कार चोरी से इतना पैसा कमाया कि बन गया फिल्म निर्माता
पुलिस के मुताबिक वाहन चोरी के धंधे में उसका जलवा था। गंगा बहादुर भंडारी उर्फ दाई है। वह तीसरी कक्षा पास है और नेपाल की राजधानी काठमांडू का रहने वाला है। वह चोरी किए गए वाहनों को बिना किसी खतरे के सही दाम पर आगे बेचने का मास्टर माइंड है। बड़े-बड़े वाहन चोर जिससे संपर्क साधना चाहते थे। वह बड़े-बड़े वाहन चोर गैंग के साथ भी अपनी शर्तों पर काम करता और नेपाल में खुद के वैनिटी वैन में सफर करता है। उसने वाहन चोरी कर इतना पैसा कमाया की नेपाल फिल्म इंडस्ट्री में फिल्म (उनको समझाना मां) और सीरियल (वक्र रेखा) तक बना डाला। 16 साल से फरार 50 मामलों में वांछित गंगा बहादुर भंडारी (45) को पूर्वी जिला पुलिस की एएटीएस ने आनंद विहार बस अड्डे से गिरफ्तार कर लिया है।
उसके पास से पुलिस को चोरी की ऑल्टो कार और आठ हजार रुपये नकली नोट बरामद हुए है। पूर्वी जिला अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त आसिफ अली ने बताया कि वह बहुत ही शातिर रिसीवर है। वह बहुत कम लोगों के संपर्क में रहता था। यही वजह है कि 16 साल में कई बार भारत आने के बाद भी गिरफ्तार नहीं हुआ। वह आखिरी बार 1995 में दिल्ली पुलिस स्पेशल स्टाप के हत्थे चढ़ा था। उसके बाद वह भगोड़ा घोषित कर दिया गया। पुलिस के मुताबिक भारत नेपाल के अलग-अलग सीमा क्षेत्र से वह चोरी के वाहनों को नेपाल कस्टम में साठगांठ से टूरिस्ट परमिट पर ले जाता वहां फर्जी दस्तावेज के आधार पर बेच देता था। गंगा के पिता भारतीय सेना में गोरखा रेजीमेंट में थे। दस साल की उम्र में गंगा पहली बार दिल्ली आया था। यहां उसने बसंत विहार के मिनी महल होटल में वर्ष 1985 तक वेटर का काम किया। इसके बाद नेपाल चला गया।
1995
में
वापस
आया
तो
उसकी
मुलाकात
गुरमीत
सिंह
से
हुई।
गुरमीत
के
माध्यम
से
उसकी
मुलाकात
पंजाब
के
वाहन
चोर
मनोज
तिगड़ी
से
हुई।
मनोज
के
साथ
मिलकर
उसने
चोरी
की
गाड़ियों
को
नेपाल
ले
जाकर
बेचना
शुरू
किया।
उन्होंने
बताया
कि
वह
ज्यादा
पैसा
कमाने
के
लिए
वाहन
चुराने
वाले
लोगों
को
पेमेंट
का
75
फीसदी
हिस्सा
असली
भारतीय
रुपये
जबकि
25
फीसदी
नकली
नोट
देता।
यह
शर्त
न
मानने
वाले
से
आगे
खरीद
फरोख्त
नहीं
करता
था।
पुलिस
ने
बताया
कि
वह
साल
1977
में
दिल्ली
आया
था।
उसके
पिता
गोरखा
रेजीमेंट
में
तैनात
थे।
दिल्ली
में
वेटर
का
काम
किया
फिर
नेपाल
जाकर
काठमांडू
में
अपना
रेस्तरां
भी
खोला।
इसी
दौरान
वह
नकली
करेंसी
मामले
में
आरोपी
गुरमुख
सिंह
के
संपर्क
में
आया
फिर
उसके
माध्यम
से
वाहन
चोर
मनोज
टिगरी
से
जुड़ा।
इसके बाद चोरी के वाहन नेपाल में बेचने का काम शुरू किया था। एनसीआर ही नहीं गंग बहादुर का बंगलूरू और पंजाब जैसे राज्यों में भी नेटवर्क था। वह सिर्फ बड़े एसयूवी गाड़ियों की खरीद फरोख्त करता था। दिल्ली में वह दक्षिणी दिल्ली के वाहन चोर गैंग से ज्यादा संपर्क में रहता था। यही वजह है कि 1995 से लेकर अब तक सारे मामले उसपर दक्षिणी दिल्ली में दर्ज हैं। पुलिस के मुताबिक वह चोरों के साथ अपने अपनी शर्तों पर डीलिंग करता था। उसके ड्राइवर महेश, टिंकू भारत में वाहनों को बॉर्डर तक लाने का काम करते थे। वह पजेरो व टोयोटा जैसी लाखों की गाड़ियों के लिए महज 80 से 95 हजार रुपये तक देता था। पुलिस के मुताबिक अभी तक अंदाजा लगाया जा रहा है कि वह एक हजार से ज्यादा गाड़ियों को भारत से ले जाकर नेपाल में ठिकाने लगा चुका है।