केंद्र जेठमलानी पर अवमानना केस चलवाने पर अड़ा
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की बेंच के समक्ष कहा कि शाह की ओर यह आरोप लगाया जाना कि जस्टिस तरुण चटर्जी (अब सेवानिवृत्त) पर केंद्र और सीबीआई से मिलकर षडयंत्र का आरोप लगाना न्यायालय की अवमानना है। ऐसा करना अदालत की अवमानना करने की श्रेणी में आता है। इसमें न्यायाधीश का कथित निजी हित या कोई अन्य कारण स्पष्ट नहीं किया गया। सिर्फ काल्पनिक तौर पर मामले पर प्रभाव डालने के लिए यह दलील दी गई जो सीधे तौर पर अदालत की अवमानना है। जयसिंह ने यह दावा शाह की ओर से दी गई उस दलील पर किया जिसमें सीबीआई और केंद्र सरकार पर कथित तौर पर न्यायाधीश को शामिल कर मामले को प्रभावित करने संभावना व्यक्त की गई थी। शाह के अधिवक्ता न्यायाधीश की भूमिका पर उस समय सवाल खड़ा किया था जब फर्जी मुठभेड़ मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया गया था।
12 जनवरी, 2010 के आदेश पर यह सवाल खड़ा करते हुए शाह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामजेठमलानी ने कहा था कि आदेश जारी करने के दौरान न्यायाधीश खुद गाजियाबाद पीएफ घोटाला मामले में सीबीआई जांच के दायरे में थे। ऐसी स्थिति में उन्हें फर्जी मुठभेड़ मामले की पहली अवस्था में ही सुनवाई से इनकार कर खुद को अलग कर लेना चाहिए था। दूसरी ओर केंद्र ने सभी आरोपों को नकारते हुए कहा है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी यह राजनेता अपनी ओर से दिए गए दावों से संबंधित कोई भी साक्ष्य पेश करने में असफल रहे है।