मौत से तीन दिन पहले गद्दाफी ने लिखी थी वसीयत
गद्दाफी की मौत के 5 दिन बाद जब उसकी वसीयत सामने आई, तो लीबिया की अंतरिम सरकार के भी होश उड़ गये। आगे की बात करने से पहले आईए गद्दाफी की वसीयत पर चर्चा कर लें जिससे यह स्पष्ट हो जायेगा कि गद्दाफी मौत के उन फरीश्तों को देख चुका था, जो बहुत जल्द उसे अपने साथ ले जाने के लिये आने वाले थे। गद्दाफी ने अपनी वसीयत की शुरुआत में ही लिख दिया था कि "मैं मुअम्मर बिन मोहम्मद अब्दुस्ल्लाम बिन हुमैद बिन नईल अलफुहसी गद्दाफी यह कसम खाता हूं कि अल्लाह के अलावा मेरा कोई और नहीं है और मोहम्मद अल्लाह के पैगंबर हैं। मैं शपथ लेता हूं कि मैं एक सच्चे मुसलमान की तरह मरुंगा। अगर मैं लड़ाई में मारा जाऊं तो मुझे मुस्लिम रीति रिवाज़ से दफनाया जाये। मुझे उसी कपड़े में दफनाया जाए जो मैने मौत के समय पहने हों। दफनाने से पहले मुझे नहलाया भी ना जाये और मुझे मेरे शहर सिर्त में मेरे रिश्तेदारों के बगल में दफना दिया जाए।"
गद्दाफी ने अपनी वसीयत मौत के तीन दिन पहले यानि कि 17 अक्टूबर 2011 को तीन रिश्तेदारों के सामने लिखा था। खास बात तो यह है कि हमेशा सोने की कलम से लिखने वाले गद्दाफी ने इस बार सामान्य कलम का प्रयोग किया। गद्दाफी अपने बीबी बच्चों से बेहद प्यार करता था। इसलिये वह हमेशा उनकी सुरक्षा को लेकर फिक्रमंद रहता था। गद्दाफी को यह डर था कि उसके जाने के बाद लीबिया के लोग उसके परिवार वालों को नुकसान पहुंचाएंगे। उसने अपने वसीयत में लीबिया की जनता से गुजारिश की थी कि वह उसके बीबी और बच्चों के साथ कोई बदसलूकी ना करें।
वसीयत में गद्दाफी ने लिखा था, "मैं चाहता हूं कि मेरे मरने के बाद मेरे परिवार के लोगों, खासकर महिलाएं और बच्चों के साथ अच्छा सुलूक किया जाये। लीबिया के लोग अपने इतिहास और शख्सियत के साथ देश के शूरवीरों की यादों को बचा कर रखें। लीबिया के लोगों को उनके बलिदानों को कभी नहीं भूलाना चाहिए... मैं अपने समर्थकों से अपील करता हूं कि वह लीबिया के दुश्मनों के खिलाफ हमेशा जंग जारी रखें। पूरी दुनिया को यह मालूम पड़ना चाहिए कि हम भी एक सुरक्षित जिदंगी जी सकते थे... और हम भी अपने उद्देशों को बेच सकते थे। मगर हमने ऐसा नहीं किया और लड़ना बेहतर समझा। हमने जंग को ही अपना कर्तव्य और सम्मान समझा। अगर हम यह जंग नहीं जितते हैं तो आने वाले समय में यह हमारे नस्लों के लिये एक सबक होगा। अपने देश को बाहरी ताकतों से बचाना एक सम्मान की बात है और देश को बेच देना सबसे बड़ी गद्दारी। इसे इतिहास में याद किया जायेगा चाहें दूसरे इसे कितना भी झूठलाने की कोशिश करें।"
खैर गद्दाफी की वसीयत जानने के बाद उसकी अंतिम इच्छा तो जाहिर हो जाती है मगर एक चीज और है जिस पर वहां कि अंतरिम सरकार को ध्यान देने की जरुरत है। गद्दाफी की वसीयत इस ओर इशारा कर रही है कि शुरुआती दौर में उसने तानाशाही अपनी बीबी और बच्चों के खुशी के लिये की मगर बाद में जो कुछ भी हो रहा था उसमें विदेशी ताकतों का हाथ था।