मारन के पत्र से मची खलबली, पीएम पर उठे सवाल
मारन ने 2006 में तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्री-समूह को विचार के लिये दिये गये मुद्दों को लेकर आपत्ति जतायी थी। उन्होंने यह इच्छा जतायी थी कि समूह केवल रक्षा मंत्रालय द्वारा छोड़े गये स्पेक्टम के मुद्दे पर ही विचार करे। मारन ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 28 फरवरी 2006 को इस संबंध में एक पत्र लिखा था।
सीबीआई की गिरफ्त में चल रहे मारन पर एयरसेल के अधिग्रहण में मलेशियाई कंपनी का पक्ष लेने का आरोप है। लेकिन मारन का मानना था कि मंत्री समूह को जिन मामलों पर विचार का अधिकार दिया गया है, वह मंत्रालय के कामकाज में दखल है।
नये खुलासे के मुताबिक मारन ने प्रधानमंत्री को पत्र में लिखा था, "आपने मुझे आश्वस्त किया था कि मंत्री समूह उन्हीं मुद्दों पर विचार करेगा, जो हम चाहते हैं। इसके तहत समूह को केवल खाली हुए स्पेक्टम पर ही विचार करना था। मैं इससे अचंभित हूं कि मामले पर गठित मंत्री समूह को व्यापक अधिकार दिये गये हैं और मेरा मानना है कि यह मंत्रालय के कामकाज में दखल है।" मारन ने सुझाव दिया था कि रक्षा मंत्रालय द्वारा खाली किये गये स्पेक्टम के मामले पर विचार के लिये मंत्री समूह के गठन किया गया है, तो बाकी के मुद्दों पर चर्चा क्यों की जा जाये।
मारन के पत्र से पूरे यूपीए में खलबली मच गई है कि अब क्या होगा। दूसरी तरफ विरोधी दलों ने भी मनमोहन सिंह को घेरने के पूरे इंतजाम कर लिये हैं।