पीएम और न्यायपालिका पर टीम अन्ना में विवाद
प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को छोड़ दिया जाए तो इसके बाद भी टीम अन्ना हजारे और सरकार के लोकपाल बिल के बीच में 6 शर्तों को लेकर सहमति नहीं है।
1. जनलोकपाल बिल में यह मांग की गई है कि संसद में सांसदों का आचरण लोकपाल के दायरे में हो और मंत्रियों के खिलाफ लोकपाल जांच कर सजा दे सकता है। जबकि सरकारी लोकपाल बिल में कहा गया है कि सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में नहीं रखा जा सकता है। इसके लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। इसके अलावा सांसद ही सांसदों के मामलों की जांच करेंगे।
2. जनलोकपाल बिल में सीबीआई और सीवीसी को लोकपाल में ही मिलाने की बात कही गई है जबकि सरकारी लोकपाल बिल में इस बात को मंजूरी नहीं दी गई है। सरकारी लोकपाल बिल में यह कहा गया है कि जब-जब जरूरत होगी उस समय सीबीआई मामले की जांच करेगी।
3. जनलोकपाल बिल में कहा गया है कि सरकारी अधिकारी के खिलाफ शिकायत आते ही उसे अपने पद से हटना पड़ेगा जबकि सरकारी लोकपाल बिल में यह बता कही गई है कि जांच पूरी होने के बाद ही उस अधिकारी को हटाया जा सकता है।
4. सरकारी लोकपाल में कहा गया है कि लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को शिकायत करने के बाद ही किसी मामले पर जांच की जाएगी। जबकि जनलोकपाल बिल में कहा गया है कि कोई भी आम आदमी शिकायत कर सकता है।
5. जनलोकपाल बिल में कहा गया है कि किसी के भी खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सामने आने के बाद उसे कम से कम 10 साल और अधिक से अधिक आजीवन कारावास की सजा दी जाए। सरकारी लोकपाल बिल में भ्रष्टाचार की पुष्टि होने पर 6 महीने से लेकर 7 साल तक ही सजा देने का प्रावाधान है।
6. सरकारी लोकपाल में कहा गया है कि लोकपाल केवल किसी भी मामले पर जांच के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार कर सकता है सजा नहीं। जबकि जनलोकपाल बिल में लोकपाल को ही सजा तय करने का अधिकार दिया गया है।
ये प्रमुख शर्तों को लेकर ही अभी तक सरकार और अन्ना हजारे टीम में आम सहमति नहीं बन पाई है। संतोष हेगड़े सिविल सोसाइटी टीम के अहम सदस्य हैं। जनलोकपाल बिल को ड्राफ्ट करने में उनकी अहम भूमिका रही है। कुछ दिन पहले उन्होंने भी यह बात मानी थी कि जनलोकपाल बिल की कुछ शर्तें अव्यवहारिक हैं। कुछ शर्तों पर विपक्ष को भी टीम अन्ना का सहयोग प्राप्त नहीं है। इसमें प्रधानमंत्री और जजों को लोकपाल बिल के दायरों में रखने पर सहमत नहीं।
अभी इस पर टीम अन्ना के बीच कोई विचार नहीं हुआ है। हालंकि टीम अन्ना की अहम सहयोगी मेधा पाटकर ने संतोष हेगड़े के इन विचारों को ठुकरा दिया है। अगर सिविल सोसाइटी में विचार विमर्श के बाद बात नहीं बनती है तो टीम में आपसी बहस की बात भी सामने आ सकती है। मेधा पाटकर ने कहा कि वे प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को लोकपाल से बाहर रखने में राजी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि संतोष हेगड़े की यह व्यक्तिगत राय हो सकती है।