चवन्नी तुझे सलाम
मुझे आज भी वो दिन याद है जब मैं कक्षा एक में पढ़ता था और जेब खर्च के रूप में मां मुझे चवन्नी देती थीं। उस दौरान वो चवन्नी मेरे लिये किसी सोने के सिक्के से कम नहीं होती थी। स्कूल में इंटरवल के दौरान उस चवन्नी के बल पर मैं तमाम दोस्तों के सामने दम भर कर कह पाता था कि आज मैं भी पैसे लेकर आया हूं। जिस दिन चाचाजी, पिताजी और दादाजी ने अगर एक-एक चवन्नी दे दी तो मैं सातवें आसमान पर होता था।
जिसे आज के युवा ट्रीट कहते हैं और एक बार में सौ-डेढ़ सौ रुपए खर्च कर देते हैं, वहीं ट्रीट उन चार चवन्नियों में हो जाती थी। स्कूल में सभी को एक-एक समोसा खिलाने के बाद जो खुशी मिलती थी, वो शायद अब 10 रुपए का समोसा खाने में भी नहीं मिलेगी। उस चवन्नी में मैं आईसक्रीम, समोसा, पैटीज़, चॉकलेट, आदि में जो चाहूं खा लेता था।
गुल्लक का ट्रेंड अब लगभग खत्म हो गया है। बहुत कम बच्चे हैं जो गुल्लक में पैसे जमा करते हैं। लेकिन उस जमाने में हर बच्चे की अपनी गुल्लक हुआ करती थी। मुझे आज भी याद है, जब भी मेरी गुल्लक खोली जाती थी, उसमें से सबसे ज्यादा चवन्नियां निकलती थीं। उन चवन्नियों को जोड़ कर मैं अपने भाईयों के साथ दशहरे या गणतंत्र दिवस का मेला देखने जाता था। मेले के वो पल मुझे आज भी याद हैं, जब लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में रावण दहन होता था। चवन्नियां जोड़ कर हम मेले में चाट-पकौड़ी खाने के बाद अपने घर को सजाने की वस्तुएं खरीद लाते थे। कई बार तो दीवाली के लिए पटाखे भी पहले से आ जाते थे।
और तो और उस समय जब मेरी मम्मी मुझे अपने दिन याद दिलाती थीं, तब तो होश से उड़ जाते थे। मम्मी बताती थीं कि वो लखनऊ से कानपुर तक का सफर चवन्नी में करती थीं। ब्रेड, तेल, साबुन, कोका-कोला तक चवन्नी में आ जाता था। आज की जैनरेशन ये बातें सुनेगी तो शायद उसे विश्वास नहीं होगा, क्योंकि आज बाजार में पानी खरीदने के लिए दस रुपए भी कम पड़ते हैं।
अगर आपके पास कोई चवन्नी है, तो उसे हाथ में लीजिये। अब सोचिए इसी चवन्नी ने देश के लाखों लोगों की भूख मिटाई होगी। उस दौर में जब चवन्नी में दो पूडि़यां या रोटी-सब्जी मिलती थी, तब इसी चवन्नी ने लाखों लोगों की भूख मिटाई होगी। वो चवन्नी लाखों भिखारियों के कटोरों से गुजरी होगी। चवन्नी का मोल हम आप समझे या नहीं, लेकिन वो गरीब जरूर समझते हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी सड़कों के किनारे काट दी। वे जरूर समझते होंगे, जिन्होंने कभी चवन्नी से अपने पेट की भूख शांत की होगी और वो भी जानते होंगे, जो पैसे का मोल समझते हैं।
सिक्का कितना ही छोटा क्यों ना हो अन्य सिक्कों से मिलने के बाद वो रुपये ही बनाता है। महंगाई आज रह-रह कर चवन्नी और अठन्नी का मोल याद दिलाती है। ये वो यादें हैं, जो कभी भुलाई नहीं जा सकतीं। इन ना भुला पाने वाली यादों के साथ एक बार फिर चवन्नी तुझे मेरा सलाम।