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अरुणा की इच्छामृत्यु नहीं, इंसानियत की जीत

By Jaya Nigam
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Supreme Court
दिल्ली | मुंबई के अस्पताल में पिछले 37 सालों से कोमा से जूझ रही अरुणा शानबाग के लिए उनकी मित्र पिंकी वीरानी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल इच्छा मृत्यु की गुजारिश अदालत ने सोमवार को खारिज कर दी। शुक्रवार को इस मामले में एटॉर्नी जनरल ने अपनी नामंजूरी दी थी। एटॉर्नी जनरल का तर्क था कि जब तक इस मामले में देश में कोई कानून नहीं बन जाता, इस तरह की याचिका को मंजूरी देना गैरकानूनी है।

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सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की अगली तारीख आज (सोमवार) की दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा शानबाग की इच्छा मृत्यु की याचिका को यह कह कर खारिज कर दिया कि जब 37 सालों से अरुणा कोमा में हैं तो उनकी मित्र कहलाने वाली पिंकी वीरानी उनकी इच्छा बता कर उनके लिए इच्छामृत्यु कैसे मांग सकती हैं?

इसके अलावा मुंबई के KEM अस्पताल में भर्ती अरुणा की इच्छामृत्यु के लिए अस्पताल ने अपनी सलाह दी कि वह अरुणा की देख-भाल बेहतर तरीके से कर रहे हैं और उन्हे आगे भी इस ड्यूटी को निभाने में कोई आपत्ति नहीं है। अस्पताल की नर्सें और डॉक्टर अरुणा को इच्छामृत्यु दिए जाने के खिलाफ थे। सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा को इच्छामृत्यु देने से मना करते हुए टिप्पणी की कि भारत में इस तरह के मामले को मंजूरी दिए जाने पर इसके सदुपयोग से अधिक दुरुपयोग की उम्मीद है।

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English summary
Supreme Court dismisses plea of Mercy Killing in Aruna Shanbaug case who is admitted in KEM hospital from last 37 years. Her friend Pinky Virani filed the petition for her.
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