बिहू के जश्न में डूबा असम
पूरे असम में लोगों ने शनिवार तड़के से ही 'मेजि' और 'भेलाघार' से अलाव बनाकर जलाए और तरह-तरह के पकवान बनाकर खाए।
'मेजि' एक बड़ी सी मंदिरनुमा संरचना होती है जो जलाऊ लकड़ी, बांस से बनी होती है जबकि 'भेलाघार' बांस से बनी अस्थायी झोंपड़ी होती है। लोगों ने सुबह-सुबह अलावा जलाकर और मंदिर में विशेष प्रार्थनाएं कर इस त्योहार की शुरुआत की।
इस पर्व के पहले दिन को 'उरुका' कहा जाता है। इसकी शुरुआत शुक्रवार शाम को हो गई थी जबकि वास्तविक माघ बिहू शनिवार को है।
दो दिवसीय पर्व के पहले दिन 'उरुका' को सामुदायिक भोज का आयोजन किया जाता है। जिसमें मछली व मांस से बना भोजन परोसा जाता है।
लोग 'मेजि' और 'भेलाघार' की राख को अपनी कृषि भूमि में बिखेर देते हैं। लोगों का मानना है कि इससे जमीन की उर्वरता बढ़ जाती है।
पर्व के दूसरे दिन माघ बिहू के अवसर पर शनिवार को दोपहर के भोज का आयोजन किया गया। जिसमें चिवड़ा (चावल), पिठा (चावल से बनी मिठाई) और दही परोसा गया।
इस अवसर पर सांडों की लड़ाई, पक्षियों की लड़ाई सहित अन्य पारम्परिक खेलों का आयोजन किया गया।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।