भारत-चीन मैत्री की उम्दा मिसाल थे डॉक्टर कोटणीस (चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की यात्रा के अवसर पर विशेष)

Google Oneindia News

नई दिल्ली, 15 दिसम्बर (आईएएनएस)। भारत-चीन मैत्री का प्रतीक माने जाने वाले डॉक्टर द्वारकानाथ शांताराम कोटणीस उन पांच युवा चिकित्सकों में से थे जो 1938 के दूसरे चीन-जापान युद्ध के दौरान चीनवासियों की मदद के लिए उनके वतन गए थे। यह साल डॉक्टर कोटणीस का जन्मशती वर्ष है और उनके निधन के करीब सात दशक बाद भी उनकी निस्वार्थ सेवा, साहस, समर्पण और बलिदान को आज भी चीनवासी श्रद्धा से याद करते हैं।

द्वितीय चीन-जापान युद्ध के दौरान चीन के कम्युनिस्ट जनरल झू दे ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से भारतीय चिकित्सकों को चीन भेजने का अनुरोध किया था। इस पर नेहरू ने मुसीबतों का सामना कर रहे अपने इन हमसायों की मदद के लिए भारतवासियों से आगे आने का आह्वान किया था। डॉक्टर कोटणीस उस दौरान चीन भेजे गए उन्हीं पांच चिकित्सकों में से थे। उनके अलावा अन्य सभी सकुशल स्वदेश लौट आए लेकिन बीमारी की वजह डॉक्टर कोटणीस की बहुत कम उम्र में ही मौत हो गई थी।

डॉक्टर कोटणीस का जन्म 10 अक्टूबर 1910 को महाराष्ट्र के शोलापुर में एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनका भरा-पूरा परिवार था जिसमें दो भाई और पांच बहने थीं। उन्होंने मुम्बई विश्वविद्यालय के जी.एस. मेडीकल कॉलेज से पढ़ाई की थी। वह जब मध्य चीन के हेबई सूबे पहुंचे तो उनकी उम्र 28 साल थी। उसके बाद उन्हें यानान भेजा गया और फिर उसके बाद 'डॉक्टर बेथ्यून इंटरनेशनल पीस हॉस्पिटल' का निदेशक बना दिया गया।

वह करीब पांच साल तक सचल दवाखानों के माध्यम से घायल सैनिकों और आम नागरिकों का इलाज करते रहे। वह दिन-रात मरीजों की सेवा में जुटे रहते थे और उनका कहना था कि मरीजों के आने की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए बल्कि स्वयं मरीजों तक पहुंच जाना चाहिए। इसी अथक परिश्रम का असर बाद में उनकी सेहत पर पड़ने लगा था।

अपने निधन से एक वर्ष पूर्व नवंबर 1941 में उन्होंने चीन की एक युवती गाओ शिंगलान से विवाह कर लिया। गाओ 'डॉक्टर बेथ्यून इंटरनेशनल पीस हॉस्पिटल' में नर्स थी। डॉक्टर कोटणीस और गाओ का एक पुत्र भी था जिसका नाम यिनहुआ रखा गया था। जिसका शब्दिक अर्थ -'यिन' यानी भारत और 'हुआ'-यानी चीन है।

दिसम्बर 1942 में बीमारी की वजह से डॉक्टर कोटणीस का निधन हो गया। उनके निधन पर चीन के शीर्ष नेता माओत्से तुंग ने कहा था, "सेना ने अपना मददगार और जनता ने अपना दोस्त खो दिया है।"

बाद में यिनहुआ की भी मौत 24 वर्ष की अल्पायु में हो गयी थी। उसके बाद डॉक्टर कोटणीस की विधवा ने दूसरा विवाह कर लिया था।

चीनवासी आज भी डॉक्टर कोटणीस की निस्वार्थ सेवाओं का याद करते हैं। उनकी याद में चीन में स्मारक बनाए गए हैं, प्रमुख चिकित्सा संस्थान का नाम उन्हीं पर रखा गया है और उन पर डाक टिकट भी जारी किया गया है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

**

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X