क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

भोपाल गैस कांड : त्रासदी के 26 साल ....

By अंकुर शर्मा
Google Oneindia News

मयखाने में वह हर जाम के साथ
अपने गम को भुला आते हैं
पर उतर जाता है जब नशा
तो फिर गम और ज्यादा सताते हैं
महफिलों में मय बंटती है अमृत की तरह
पीकर लोग बहक जाते हैं
जाम की कुछ बूंदों में ही
भद्र लोगों के नकाब उतर जाते हैं....

'मस्तराम आवारा' की ये लाईनें तो उनके दिल का हाल बयां करती है और ये बताती है वक्त के साथ लोगों पर चढ़ नशा भी उतर जाता है, लेकिन शायद हमारे देश के राजनीतिक रसूखदारों पर चढ़ा सत्ता और दौलत का नशा कभी नहीं उतरेगा, क्योंकि शायद जिस दिन ये नशा उतर जायेगा उस दिन देश का हर मसला सुलझ जायेगा। आज उस त्रासदी ने अपने 26 साल पूरे किये हैं जिसे याद करके भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जीं हां आपने सही समझा आज भोपाल गैस त्रासदी के 26 साल पूरे हो गये हैं। दिसंबर 1984 में घटित भोपाल गैस त्रासदी भारत के इतिहास में वह काला अध्याय है जिसे शायद ही कभी भुलाया जा सकता है।

भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर मे 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कम्पनी के कारखाने से एक हानिकारक गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई तथा बहुत सारे लोग अंधापन के शिकार हुए।

पढ़े : भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी खबरें

इस भयंकर काण्ड में हजारों लोगों की जान लेने के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड ने शुरू से ही अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया। और बेबस जिन्दगी अपनी लाचारी पर आंसू बहाती रही। लोगों के हो -हल्ला मचाने पर इस दुख भरे दास्तान की फाइल खुली तो ..लेकिन इस फाइल के खुलने में लग गये पूरे 25 साल। न्यायालय के फैसले ने इस त्रासदी में शिकार लोगों के परिवार को और दुखी कर दिया। क्योंकि कोर्ट ने सात दोषियों को दो साल की सजा और एक लाख रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया लेकिन सजा सुनाने के कुछ ही देर बाद सभी आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया।

अब सवाल यहां ये उठता है कि क्या इस फैसले से बीते 25 साल के वो सुनहरे पल लौट आयेंगे जिन्हें पीड़ित परिवारों ने खो दिया है। फैसले के बाद समाज के ठेकेदार सरकार को, सरकार अमेरिका को और मीडिया दोनों को कोस रही है लेकिन किसी के पास ऐसा रूमाल नहीं जो पीड़ितों के आंसू पोंछ सके। कुछ वे लोग मौन है जो उस समय के गवाह हैं लेकिन आज उनकी बोलती बंद हैं। आखिर क्यों? इस शांति का क्या मतलब है? जाहिर है अगर उनकी शांति भंग होती है तो कुछ ऐसा सच सामने आ जायेगा जिसकी सच्चाई इस त्रासदी से भी ज्यादा भयानक होगी।

ये सच है कि गुजरा जमाना वापस नहीं आता है, मरे हुए लोग जिंदा नहीं होते है लेकिन किसी ने उनके बारे में क्यों नहीं सोचा जो जीते जी मर गये। सरकार ने आखिर उन पीड़ित परिवारों के लिए क्या किया, जिनके बेटे, पति, पिता दम घोटूं मौत के शिकार हुए थे। लेकिन राजनीतिक सेवक यहां भी बाज नहीं आये वो मासूम जनता की चिता पर राजनैतिक रोटियां सेंक रहे हैं। हल्ला और शोर मचाने वाली मीडिया भी अपने अधकचरे ज्ञान से सिर्फ जनता को गुमराह करने के अलावा कुछ नहीं किया है। सच्चाई ये ही है कि काम किसी ने नहीं किया, ना तो सरकार ने, ना समाज के ठेकेदारों ने और ना ही मीडिया ने।...

क्या आप हमारी बात से सहमत हैं अपने विचार से हमें जरूर अवगत करायें, अपनी प्रतिक्रिया नीचे लिखे कमेंट बॉक्स में दर्ज करायें..हमें इंतजार है आपकी राय जानने का।

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X