'भारतीय सोचते हैं, आर्थिक हालात सुधर रहे हैं'
अरूण कुमार
वाशिंगटन, 20 नवंबर (आईएएनएस)। भारतीयों का आर्थिक आशावाद वैश्विक मंदी में लड़खड़ाने के बाद 2010 में फिर से उठ खड़ा हुआ है। लगभग आधे भारतीय यह सोचते हैं कि उनके आर्थिक हालात सुधर रहे हैं। यह जानकारी एक नए सर्वेक्षण में सामने आई है।
अमेरिका के प्रमुख जनमत सर्वेक्षण संगठन, गैलप द्वारा शुक्रवार को जारी एक सर्वेक्षण में हालांकि कहा गया है कि खासतौर से भारत के अपेक्षाकृत कम विकसित क्षेत्रों में रोजगार उपलब्धता को लेकर धारणाएं मंद बनी हुई हैं।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि जो भारतीय इस तरह की सोच रखते हैं कि उनकी स्थानीय आर्थिक स्थिति सुधर रही है, वर्ष 2007 और 2009 के बीच ऐसे भारतीयों का प्रतिशत 52 से घट कर 37 पर आ गया था। लेकिन 2010 में यह दोबारा बढ़ कर 45 प्रतिशत पर पहुंच गया है।
अपने जीवन स्तर के बारे में भारतीयों की धारणाओं का रुझान भी कुछ ऐसा ही है। इस वर्ष 44 प्रतिशत भारतीयों ने कहा कि उनका जीवन स्तर ऊपर उठ रहा है। जबकि पिछले वर्ष 32 प्रतिशत भारतीय ही इस तरह की सोच रखने वाले थे।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि इस वर्ष के आंकड़े वैश्विक मंदी के प्रत्यक्ष रूप से सामने आने से पूर्व, जुलाई 2008 के निष्कर्षो के समान हैं।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि आशावाद में यह बढ़ोतरी आर्थिक वृद्धि के अनुरूप है। वर्ष 2008/2009 में छह प्रतिशत की निम्न वृद्धि दर के बाद भारत ने 2009/2010 में अपनी वृद्धि दर को सात प्रतिशत पर ले जाने में कामयाबी हासिल की है और इस वर्ष 9 प्रतिशत के स्तर को छूने की उसने उम्मीद लगा रखी है।
सर्वेक्षण में हालांकि कहा गया है कि देश की समृद्धि में काफी असमानता है। शहरी और ग्रामीण इलाकों के बीच तथा कई क्षेत्रों में लोगों की आय में भारी असमानता बनी हुई है।
क्षेत्रीय परिणाम संकेत देते हैं कि मंदी का प्रभाव कुछ भारतीयों पर ही ज्यादा गम्भीर था।
देश के दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्र ऐसे हैं, जहां औद्योगिक गतिविधियां व आईटी सेक्टर अधिक हैं। इन क्षेत्रों में प्रमुख आर्थिक केंद्र बेंगलुरू और मुम्बई शामिल हैं।
इन क्षेत्रों में 52 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनके जीवन स्तर में सुधार हो रहा है। जबकि अपेक्षाकृत कम विकसित उत्तर मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में मात्र 39 प्रतिशत लोग ही यह कहते हैं कि उनके जीवन स्तर में सुधार हो रहा है।
इस सर्वेक्षण के परिणाम 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 6,000 वयस्क भारतीयों के साथ सीधी बातचीत पर आधारित है। सर्वेक्षण जून 2010 में किया गया था।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।