परिवर्तन चाहते हैं तो खुद को बदलें
लुइस एल.हे
नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। बहुत से लोग इस स्थिति में अपने जीवन की अव्यवस्था से घबराकर हाथ खड़े कर देते हैं और हार मान लेते हैं। कुछ अन्य अपने आप या जीवन पर क्रोधित हो जाते हैं और वे भी हार मान लेते हैं।
हार मानने का अर्थ है, यह निर्णय लेना कि 'अब कुछ भी करना बेकार है और किसी भी प्रकार का पर्वितन करना असंभव है तो कोशिश क्यों करें?' बाकी इस तरह है, 'जो चल रहा है, वह चलले दो। कम-से-कम तुम यह तो जानते हो कि उस पीड़ा को कैसे संभालना है। आप यह सब पसंद नहीं करते, लेकिन इस सबसे परिचित है और आप उम्मीद करते हैं कि वह बदतर नहीं होगा।'
मेरे लिए गुस्से का अभ्यस्त होने का अर्थ है, मूर्ख का ताज पहनकर एक कोने में बैठे रहना। क्या यह बात आप को सही लग रही है? कुछ होता है और क्रोधित हो जाते हैं। कुछ और होता है फिर से गुस्से से ज्यादा कुछ नहीं करते।
इससे क्या लाभ होता है? केवल गुस्से में आना अपने समय को बर्बाद करनेवाली एक मूर्खतापूर्ण प्रतिक्रिया है। यह जीवन का एक नए और भिन्न रूप में देखने से इनकार करना भी है।
अपने आपसे यह पूछना अधिक उपयोगी होगा कि आप इतनी स्थितियां किस तरह उत्पन्न कर रहे हैं, जिन पर आप क्रोधित होते हैं।
आपके खयाल में इन सभी कुंठाओं के पीछे आपके कौन से विश्वास हैं? आप ऐसा क्या कर रहे हैं, जो दूसरे लोगों में आपको खिझाने की आवश्यकता को प्रेरित करता है? आपको ऐसा विश्वास क्यों है कि अपने रास्ते पर चलने के लिए आपको क्रोध करने की जरूरत है?
आप जो भी बाहर देते हैं, वह आपके पास वापस आ जाता है। आप जितना गुस्सा करते हैं, उतना ही अपने लिए ऐसी परिस्थितियां तैयार करते हैं जिन पर आपको गुस्सा आता है, जैसे मूर्ख का ताज पहनकर एक कोने में बैठे रहना और कुछ न कर पाना।
क्या यह अनुच्छेद आपके अंदर क्रोध की भावनाएं उत्पन्न करता है? बढ़िया। तीर निशाने पर लगा है। यह ऐसी बात है जिसे आप बदलने के इच्छुक हो सकते हैं।
'परिवर्तन का इच्छुक' होने का फैसला करें। यदि आप वास्तव में जानना चाहते हैं कि आप कितने जिद्दी हैं तो पर्वितन का इच्छुक होने के विचार पर ध्यान दें। हम सभी अपने जीवन को परिवर्तित देखना चाहते हैं, परिस्थितियों को बेहतर और अधिक आसान बनाता चाहते हैं, लेकिन हम बदलना नहीं चाहते। हम चाहते हैं कि वे बदल जाएं, हम ज्यों के त्यों रहें। लेकिन ऐसे में परिवर्तन तो नहीं आएगा। परिवर्तन के लिए हमें खुद को अंदर से बदलना होगा।
हमें सोचने का अपना तरीका बदलना होगा, बोलने का तरीका बदलना होगा और अपने आपको अभिव्यक्त करने का तरीका भी बदलना होगा, तभी बाहरी परिवर्तन हो पाएंगे।
यह सोच का अगला कदम है। अब हम इस बारे में काफी स्पष्ट हैं कि मूल समस्याएं क्या हैं और वे कहां से आई हैं। यही बदलने का इच्छुक होने का समय है।
(प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'यू कैन हील योर लाइफ' से साभार)
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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