मुस्लिम दर्जी के सिले कपड़े पहनते हैं रामलला
अयोध्या के दोराही कुआं इलाके में रहने वाले सादिक अली उर्फ बाबू टेलर पिछले करीब दस वर्षो से रामलला के कपड़े सिलते आ रहे हैं। 50 वर्षीय सादिक कहते हैं, "मेरे लिए यह बहुत गर्व की बात है कि रामलला को जो कपड़े पहनाए जाते हैं वे मेरे हाथ के सिले होते हैं। उन्होंने कहा कि मैं लोगों को संदेश देना चाहता हूं कि हिंदू-मुस्लिम आपस में मिल जुलकर रहें।"
हनुमानगढ़ी चौराहे पर सादिक की 'बाबू टेलर' नाम की दुकान है। वह इस दुकान को पिछले 25 सालों से चला रहे हैं। सादिक कहते हैं कपड़ों की सिलाई उनका पुश्तैनी पेशा है। वह अपने बाप-दादा की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। अयोध्या की सबसे लोकप्रिय दर्जी के रूप में भी 'बाबू टेलर' की दुकान मशहूर है।
रामलला के वस्त्र साल में दो बार सिले जाते हैं। हर रामनवमी और श्रावण मास के करीब 10 दिन पहले सादिक को वस्त्र सिलने को दे दिए जाते हैं। सादिक कहते हैं कि रामलला के लिए सात जोड़ी कपड़े सिले जाते हैं, जो मलमल के होते हैं। उन्हें सातों दिन शुभ रंग के हिसाब से अलग-अलग रंग के कपड़े पहनाए जाते हैं।
रामलला के साथ उनके भाइयों (लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न) के लिए भी इसी तरह अलग-अलग सात जोड़ी कपड़े सिले जाते हैं। सादिक कहते हैं कि रामलला के कपड़े वह अपनी दुकान के किसी अन्य सहयोगी न देकर खुद सिलते हैं।
वह कहते हैं, "मुझे भगवान राम का काम करके इतनी खुशी मिलती है कि मैं इसे शब्दों में नहीं बयान कर सकता। जब रामलला के मुख्य पुजारी ने मुझे यह काम सौंपा तो मुझे महसूस हुआ कि मैं बहुत खुशनसीब इंसान हूं। लगता है, भगवान राम ने मुझे भाईचारे का संदेश देने के लिए चुना है।"
रामलला के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास बताते हैं, " साल 2000 में हमने सादिक को रामलला के कपड़े सिलने की जिम्मेदारी सौंपी। तब से वह लगातार यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। शुरुआत में इसका विरोध हुआ, लेकिन बाद में समझाने पर सभी लोग मान गए।"
यह पूछने पर कि रामलला के कपड़े एक मुस्लिम दर्जी से सिलवाने के पीछे उनकी क्या मंशा थी, दास ने कहा कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से हिंदू और मुस्लिम के बीच जो दरार पैदा हुई, उसे पाटने के लिए उन्होंने यह कोशिश की।