कोचिंग संस्थानों में मज़ाक बना एनओएस बोर्ड
बेंगलुरू। सभी राज्यों व केंद्रीय बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम घोषित हो चुके हैं। स्कूलों में एडमीशन के लिए मारा-मारी शुरू हो चुकी है, छात्र, अभिभावक कॉलेजों के चक्कर काट रहे हैं, वो छात्र जो फेल हुए हैं, उनके अभिभावकों का टेंशन चरम पर है। वो परेशान हैं कि आखिर कैसे बच्चे का साल बचाया जाए।
और ऐसे में अगर चारों उंगलियां घी में हैं तो वो सिर्फ उन कोचिंग संस्थानों की हैं, जो फेल छात्रों को पास कराने का ठेका उठाते हैं। जी हां हम उन संस्थानों की बात कर रहे हैं, जो पास की गारंटी लेते हैं, सच पूछिए तो ये संस्थान कुछ और नहीं बल्कि इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा संचालित नेशनल ओपन स्कूल (एनओएस) बोर्ड का मजाक बना रहे हैं। यह धंधा सिर्फ छोटे शहरों तक नहीं सीमित है, बल्कि लखनऊ, कानपुर, दिल्ली से लेकर बेंगलुरू, चेन्नई तक हजारों संस्थान हैं, जो पास कराने का ठेका लेते हैं।
कैसे कार्य करते हैं ये संस्थान
ये वो कोचिंग संस्थान हैं, जो किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी नहीं कराते, साल भर पढ़ाते भी नहीं हैं। असल में इनके काम की शुरुआत होती है बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम निकलने के बाद। जब लाखों छात्र फेल हो जाते हैं, तब ये संस्थान फेल छात्रों को पास कराने का ठेका उठाते हैं वो भी गारंटी के साथ। खास बात यह है कि अगर छात्र 2010 में बारहवीं फेल हुआ है तो उसे 2010 में ही बारहवीं पास कराते हैं।
खास बात यह है कि ये सभी संस्थान एनओएस बोर्ड से फॉर्म भरवाते हैं और नकल के बल पर छात्रों को पास करा ले जाते हैं। कोचिंग संस्थानों की इस विधि से अभिभावक और छात्र सिर्फ इसलिए खुश रहते हैं, क्योंकि एनओएस बोर्ड की मार्कशीट व प्रमाण पत्र हर विश्वविद्यालय, सरकारी और निजी क्षेत्रों में अन्य बोर्डों के प्रमाण पत्रों के बराबर माना जाता है। एनओएस बोर्ड से पास छात्र को किसी भी मायने में सीबीएसई बोर्ड से पास छात्र से कम नहीं तौला जाता। नौकरी मिलने में भी कोई दिक्कत नहीं होती। इन संस्थानों के माध्यम से पास होने वाले छात्र जो राज्य व केंद्रीय बोर्ड में फेल हो जाते हैं, उनके अंक भी देख कर आप दंग रह जाएंगे। कोचिंग संस्थानों की कारगुजारी ऐसी होती है कि ज्यादातर छात्र यहां से फर्स्ट डिवीजन में पास होकर निकलते हैं।
कमजोर भविष्य की गारंटी
एक तरफ कहा जाता है कि प्रत्येक छात्र देश का भविष्य हैं, वहीं दूसरी ओर खुलेआम देश का कमजोर भविष्य तैयार किया जा रहा है। सरकार आंख मूंद कर बैठी है। जिस बोर्ड का गठन दूर-दराज में बैठे उन बच्चों के लिए किया गया था, जो शिक्षा से कोसों दूर हैं, आज उसी बोर्ड का इस्तेमाल शिक्षा के गोरखधंधे में किया जा रहा है। सच पूछिए तो गलती न कोचिंग संस्थानों की है और न अभिभावकों की, गलती सरकार की है, जो इस व्यापार को बढ़ावा दे रही है।