हौंसले ने दिलाई सिविल सेवा परीक्षा में कामयाबी
सैयद जरीर हुसैन
मोरीगांव (असम), 8 मई (आईएएनएस)। भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में इस साल सफलता हासिल करने वाले असम के नारायण कुंवर 12वीं की बोर्ड परीक्षा में एक बार असफल हो गए थे और 10वीं की बोर्ड परीक्षा उन्होंने द्वितीय श्रेणी से पास की थी।
गुवाहाटी से 80 किलोमीटर दूर स्थित मोरीगांव जिले के श्यामकोटा गांव में अपनी झोंपड़ी के बाहर नारायण ने आईएएनएस से कहा, "असफलता ही सफलता का मंत्र है।"
नारायण के गांव को जाने वाली सड़क में कई गड्ढे हैं और गांव में बिजली की भी कोई व्यवस्था नहीं है।
नारायण की इस सफलता पर बधाई देने के लिए उनके घर पहुंचे लोगों का तांता लगा हुआ था। उन्होंने कहा, "बिजली की आपूर्ति न होने की वजह से हम पढ़ाई के लिए लालटेन का इस्तेमाल करते हैं। अब भी मेरे गांव में बिजली नहीं है।"
उनकी सफलता की कहानी उल्लेखनीय है। जब वह कक्षा नौ में थे तो वित्तीय संकट के चलते छह महीने के लिए उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़ देना पड़ी थी।
वह कहते हैं, "मेरे पिता एक प्राथमिक स्कूल में शिक्षक थे, जब मैं पांचवी कक्षा में था तभी उनका निधन हो गया था। मेरी मां के लिए मेरा, मेरे दो छोटे भाइयों और एक छोटी बहन का पालन-पोषण करना बहुत मुश्किल था।" नारायण ने अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा में 119वां स्थान हासिल किया है।
वित्तीय संकट उनकी पढ़ाई के आड़े आया। वह 10वीं में द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए जबकि 12वीं की परीक्षा में एक बार असफल हुए।
उन्होंने कहा, "मैंने तय कर लिया था कि मुझे जीवन में कुछ करना है और मेरे इसी निश्चय से मुझे मदद मिली।"
बाद में उन्होंने गुवाहाटी विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नात्कोत्तर परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
उन्होंने कहा, "इसके बाद मेरी प्राथमिकता अपने परिवार को वित्तीय मदद पहुंचाना थी। इसलिए मैंने एक कॉलेज में पार्ट टाइम नौकरी शुरू कर दी।"
नारायण के दिल में कुछ करने का जज्बा था और उन्होंने प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली का रुख किया।
उन्होंने बताया, "दिल्ली में कड़ाके की सर्दी थी और मेरे पास केवल एक पतला सा कंबल था। आर्थिक तंगी के चलते मैं दिल्ली में लंबे समय तक नहीं रुक सका।"
अपनी पूरी पढ़ाई स्थानीय भाषा में करने के बावजूद नारायण कहते हैं कि उनके लिए सफलता हासिल करने में भाषा कभी भी रुकावट नहीं बनी।
वह कहते हैं कि यदि व्यक्ति निश्चय कर ले तो गरीबी, भाषा या उसका दूरस्थ इलाके से होना सफलता के रास्ते की रुकावट नहीं बनते। नारायण कहते हैं कि वह अपने जीवन में समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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