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विक्षिप्तता के चलते जंजीरों में कट रहा है जीवन

By Staff
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नागौर (राजस्थान), 26 अप्रैल (आईएएनएस)। राजस्थान के नागौर जिले के भाकरोदा गांव में रहने वाले हरिराम जाट का जीवन विक्षिप्तता के चलते जंजीरों की कैद में गुजर रहा है। हरिराम के घर में उनकी पत्नी, दो बच्चे व 75 वर्षीय पिता हैं। आर्थिक बदहाली के चलते परिवार चलाने के लिए पिता और पत्नी को काम की तलाश में बाहर निकलना पड़ता है जबकि हरिराम को इलाज के अभाव में जंजीरों में जकड़ कर रखा जाता है।

खुद से ही बातें करते और सूनी आंखों से दीवारों को घूरते हरिराम घर-परिवार और दीन-दुनिया से बेखबर हैं। उनकी सूनी आंखों को पिछले 10 सालों से न जाने किसकी तलाश है लेकिन उनके 75 वर्षीय बूढ़े पिता आज भी हरिराम और उनके बच्चों की देखभाल कर रहे हैं।

हरिराम का परिवार खेती-बाड़ी कर अपने परिवार का गुजारा करता है। एक दशक पहले हरिराम मानसिक बीमारी का शिकार हो गया था और उसके परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनके बूढ़े पिता के कंधों पर आ गई थी।

हरिराम के पिता गुताराम बताते हैं, "जब मेरा बेटा 25 साल का था तो मैंने काफी धूमधाम से उसकी शादी की थी। लेकिन शादी के कुछ साल बाद उसने असामान्य व्यवहार करना शुरू कर दिया। शुरू में थोड़ी ही असामान्यता थी लेकिन पिछले दस वर्षों में उसकी हालत और बिगड़ती चली गई। हम हमेशा उसे जंजीरों में बांध कर रखते हैं।"

गुताराम का कहना है कि हरिराम को स्वतंत्र रखने की कोशिश की गई थी लेकिन वह हिसात्मक व्यवहार पर उतारु हो गया। हमेशा उसके घर से बाहर जाने का खतरा बना रहता है इसलिए हम उसे जंजीरों में बांध कर रखते हैं। वह कहते हैं कि हमारे पास इतना पैसा भी नहीं है कि हम उसका इलाज करा सकें।

अपनी आखों में आंसू लिए गुताराम कहते हैं, "जो थोड़ा पैसा मेरे पास बचा था उसे मैंने उसके इलाज पर खर्च कर दिया। जोधपुर के एक चिकित्सक से अपने बेटे का इलाज कराया। उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ। मैंने वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों से भी सहायता मांगी थी लेकिन उन्होंने मेरी मांग को अनसुना कर दिया। पिछले 10 वर्षो में कोई भी व्यक्ति मेरी सहायता के लिए आगे नहीं आया। मैं इलाज का खर्च नहीं उठा सकता।"

उल्लेखनीय है कि गुताराम के परिवार के पास जीविकोपार्जन के लिए कृषि योग्य जमीन भी नहीं है और बचा-खुचा पैसा उन्होंने बेटे के इलाज पर खर्च कर दिया। इसके परिणामस्वरुप हरिराम का 13 वर्षीय बेटा और 15 वर्षीय बेटी स्कूल जाने से वंचित हो गए हैं। वे इस उम्र में पढ़ाई करने की जगह बकरियों की देखभाल करते हैं।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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