हुसैन की कतर नागरिकता पर मतभेद
रविवार को 95 वर्षीय हुसैन ने कतर में भारत की राजदूत दीपा वाधवा से मुलाकात कर उन्हें अपना पासपोर्ट सौंप दिया था। उनके इस कदम पर जहां कुछ भारतीय कलाकारों का कहना है कि हुसैन को देश नहीं छोड़ना चाहिए,वही कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने पिछली बातों को छोड़कर नया घर खोज लिया है।
हुसैन के करीबी मित्र और फोटोग्राफर राम रहमान ने आईएएनएस से कहा, "जब हुसैन ने यह घोषणा की कि वह कतर के नागरिक बन गए हैं, तब उन्होंने राजनीतिक बयान दिया था। पासपोर्ट सौंपना केवल औपचारिकता थी। वह अपने जगह पर ठीक हैं क्योंकि व्यवस्था, न्यायालय और यहां तक हमारे ईश्वर तक ने उन्हें निराश किया।"
इस मुद्दे पर रहमान, विवान सुंदरम, अर्पणा कौर, एम.के.रैना, शुभा मुद्गल और के.बिक्रम सिंह जैसे कलाकारों ने केंद्रीय गृहमंत्री को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने हुसैन द्वारा पासपोर्ट सौंपने की घटना को 'राष्ट्रीय त्रासदी' करार दिया। इन बुद्धिजीवियों ने सरकार से पूछा कि यदि हुसैन देश लौटना चाहेंगे तो उन्हें किस प्रकार की सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी।
उधर, बांग्लादेश में भारत उच्चायुक्त रह चुकीं वीणा सीकरी ने कहा, "कई ऐसे भारतीय हैं जिन्होंने अन्य देशों की नागरिकता ग्रहण की है। यह वैश्विक प्रक्रिया का हिस्सा है। हुसैन ने अपनी पसंद के आधार पर फैसला किया है।" निजामुद्दीन औलिया दरगाह के फारुक निजामी ने कहा कि हुसैन को हिंदुस्तान की नागरिकता नहीं छोड़नी चाहिए। उन्होंने कहा, "हुसैन को भारत की नागरिकता नहीं छोड़नी चाहिए। उनका जन्म यहां हुआ है और इसी देश ने उन्हें प्रसिद्धि दी है।"
इस मुद्दे पर नई दिल्ली स्थित आर्ट मॉल के निदेशक नरेन भिखू राम जैन ने कहा, "दार्जीलिंग में उपजाई गई चाय ब्रिटिश ले गए। भारत के गौरव हुसैन अब कतर के गौरव के रूप में जाने जाएंगे।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।