जवाबदेही के बारे में अंसारी के सुझाव को मिला समर्थन
नई दिल्ली, 20 जनवरी (आईएएनएस)। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने खुफिया एजेंसियों को विधायिका के अधीन लाने का सुझाव दिया है। उनके इस सुझाव का कई पूर्व खुफिया प्रमुखों ने स्वागत किया है तो कुछ ने कहा है कि सामरिक खुफिया जानकारियों को सार्वजनिक क्षेत्र से दूर रखे जाने की आवश्यकता है।
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) द्वारा मंगलवार को आयोजित चतुर्थ आर.एन.काव स्मृति व्याख्यान देते हुए अंसारी ने देश की खुफिया एजेंसियों के संचालन में जवाबदेही और निगरानी का एक बड़ा मुद्दा उठाया और सुझाव दिया कि एक लोकतांत्रिक समाज के नियमों के अनुसार खुफिया मामले पर संसद की एक स्थायी समिति गठित की जानी चाहिए।
इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के पूर्व निदेशक अजीत कुमार डोवाल ने आईएएनएस से कहा, "यह जरूरी है कि खुफिया एजेंसियों की जवावदेही होनी चाहिए लेकिन निगरानी प्रक्रिया के बारे में अच्छी तरह से विचार करना होगा। एजेंसियां तमाम गुप्त मामलों से निपट रही होती हैं, लिहाजा उन्हें पूरी तरह सार्वजनिक रूप से नहीं संचालित किया जा सकता।"
रॉ के पूर्व प्रमुख विक्रम सूद ने भी कहा कि सैद्धांतिक रूप से उन्हें खुफिया एजेंसियों की निगरानी के लिए संसदीय समिति की स्थापना से कोई आपत्ति नहीं है।
सूद ने आईएनएस से आगे कहा, "लेकिन यह सब समिति के ब्यौरे पर निर्भर होगा। गड़बड़ी उसी ब्यौरे में है। फिर भी संसदीय फोरम का सुझाव बुरा नहीं है लेकिन एजेंसियों का मूल्यांकन करने वाली व्यवस्था को विस्तारित किए जाने की जरूरत है।"
आईबी के पूर्व निदेशक अरुण भगत ने आईएएनएस को बताया, "यह एक पुराना विचार है, जो सामने अब आया है। व्यक्तिगत रूप से मुझे इस तरह की समिति से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसे सही तरीके से गठित किया जाए, इस निगरानी पद्धति को मुखर होना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण यह कि इस प्रक्रिया को प्रभावी होना चाहिए।"
यहीं पर रॉ के एक अन्य पूर्व प्रमुख ए.एस.दौलत का कहना है, "खुफिया एजेंसियां पूरी तरह जवाबदेह हैं, इसलिए हमें उनके बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए। हम पाकिस्तान की इंटर सर्विसिस इंटेलिजेंस की तरह नहीं हैं।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।