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दिल्लीः बड़ी संख्या में बच्चे हैजा की चपेट में

By Staff
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Slum Children
नई दिल्ली। दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में इन दिनों हैजा और एनीमिया जैसी घातक बीमारियों के चपेट में आ रहे हैं। एक गैर सरकारी संगठन के आंकड़ों के अनुसार यहां तकरीबन 19 लाख बच्चे ऐसे हैं, जो स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से दूर हैं।

'दिल्ली फोर्सेस' (दिल्ली फोरम फॉर क्रैश एंड चाइल केयर सर्विस) द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में बताया गया है कि यहां के झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले छह वर्ष उम्र तक के 75 फीसदी बच्चे हैजा और 63 फीसदी एनीमिया से ग्रस्त हैं। संगठन का कहना है कि बच्चों के साथ-साथ महिलाओं की भी स्थिति चिंताजनक है।

संगठन ने गुरुवार को यहां एक कार्यक्रम में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों और महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डाला गया। 'दिल्ली फोर्सेस' की कार्यकारी निदेशक मृदुला बजाज ने कहा कि दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ियों तक स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं।

सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि राजधानी में कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। यहां 35.4 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं वहीं तीन वर्ष से कम उम्र के 33.1 फीसदी बच्चों के वजन औसम से काफी कम हैं। वर्ष 2006-07 के दौरान केवल 12,000 बच्चे ही सरकार द्वारा संचालित 'क्रैश कार्यक्रम' (बच्चों की देखभाल) से जुड़ सके।

सर्वेक्षण के अनुसार झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों पर काफी कम उम्र में परिवार का दायित्व आ जाता है क्योंकि माता-पिता दोनों के काम पर जाने के बाद उन्हें ही अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करनी पड़ती है। ऐसी स्थिति शिक्षा से उनका नाता टूट जाता है।

'दिल्ली फोर्सेस' की कार्यकारी निदेशक बजाज ने कहा कि केंद्र सरकार की 'जननी सुरक्षा योजना' का लाभ गर्भवती महिलाओं को नहीं मिल रहा। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाली महिलाओं को 600 रुपये प्रतिमाह दिए जाते हैं लेकिन वर्ष 2006 में केवल 20 महिलाओं को ही इसका लाभ मिला था। उन्होंने कहा कि अधिकांश महिलाओं को इस योजना के बारे में जानकारी भी नहीं है।

झुग्गी-झोपड़ी इलाकों में स्वच्छता की भी समस्या भयावह होती जा रही है। सर्वेक्षण टीम की एक सदस्य अजंता ने कहा, "जब मैंने एक बच्चे से पूछा कि वह शौचालय करने कहां जाता है तो उसने कहा पार्क में, तो मैंने पूछा तो खेलने कहां जाते हो तब उसने कहा सड़क पर। मैं उसके जवाब से चिंतित हो गई। सरकार को इसके बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।"

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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