सर्वोच्च न्यायालय ने ताज कॉरीडोर मामले में मायावती की याचिका खारिज की (लीड-1)
न्यायमूर्ति वी. एस. सिरपुरकर और न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी की खंडपीठ ने मायावती की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि सर्वोच्च न्यायालय कानूनी याचिकाओं पर विचार करने से उच्च न्यायालयों को रोक नहीं सकता।
खंडपीठ ने सवाल किया, "देश के उच्च न्यायालयों में प्रति दिन हजारों याचिकाएं स्वीकार की जाती हैं। क्या सर्वोच्च न्यायालय याचिकाओं के स्वीकार किए जाने के स्तर पर उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप कर सकता है?"
वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल ने उच्च न्यायालय के कदम से राज्य सरकार की अस्थिरता के मुद्दे को जैसे ही उठाना चाहा, वैसे ही खंडपीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि "हमें इससे कुछ भी लेना-देना नहीं है।"
वेणुगोपाल ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा उनके मुवक्किल को जारी की गई नोटिस को निरस्त कर दिया जाए, क्योंकि यह कानूनी प्रक्रिया का मजाक है।
चूंकि अदालत ने मायावती की याचिका को खारिज कर दी है, लिहाजा अब उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय की नोटिस का जवाब देना होगा। इस नोटिस में उस जनहित याचिका पर मायावती से जवाब मांगा गया है, जिसमें पूर्व राज्यपाल टी.वी.राजेश्वर द्वारा जून 2007 में मायावती पर मुकदमा चलाए जाने की मंजूरी देने से इंकार किए जाने पर सवाल खड़ा किया गया है।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने मायावती और उनके एक कैबिनेट सहयोगी पर इस भ्रष्टाचार के मामले में कथित भूमिका के लिए मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल से मंजूरी मांगी थी।
उच्च न्यायालय ने मायावती और उनके कैबिनेट सहयोगी नसीमुद्दीन सिद्दीकी को 18 सितंबर को नोटिस जारी किया था और नौ नवंबर तक उन्हें जवाब देने के लिए कहा था। उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए 18 नवंबर की तारीख सुनिश्चित की है।
इस नोटिस को न्यायमूर्ति प्रदीप कांत और न्यायमूर्ति शाबिबुल हसन की खंडपीठ ने जारी किया है। यह जनहित याचिका लखनऊ के निवासियों, कमलेश वर्मा, अनुपमा सिंह और कतील अहमद की ओर से दायर की गई है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।