वकीलों ने की अदालत में हिंदी की मांग
पिछले
सप्ताह
वकीलों
के
एक
समूह
ने
दिल्ली
उच्च
न्यायालय
व
दिल्ली
की
पांच
जिला
अदालतों
में
इस
बात
को
लेकर
हस्ताक्षर
अभियान
चलाया
कि
उन्हें
अंग्रेजी
के
अलावा
हिंदी
में
भी
बहस
की
इजाजत
दी
जाए।
अबतक
3,000
हस्ताक्षर
इस अभियान के अगुवा व लायर्स एसोसिएशन की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने कहा, "हमें वकीलों की ओर से अच्छा प्रतिसाद मिला है और अभी तक हमारे अभियान के समर्थन में 3,000 हस्ताक्षर हासिल हो चुके हैं।"
अग्रवाल ने कहा कि हस्ताक्षर जुटा लेने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अजित प्रकाश शाह से आग्रह किया जाएगा कि वकीलों को अपने मामलों को अंग्रेजी के अलावा हिंदी में प्रस्तुत करने की अनुमति प्रदान की जाए, क्योंकि यह राष्ट्र भाषा है।
दिल्ली उच्च न्यायालय अधिनियम वकीलों को हिंदी में बहस की अनुमति नहीं देता। अग्रवाल ने बताया, "हमारे संविधान का अनुच्छेद 19(ए) कहता है कि हर व्यक्ति अपने विचार को किसी भी भाषा में व्यक्त कर सकता है और इस तरह अदालतों में हिंदी के इस्तेमाल से इंकार करना इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।"
मुवक्किलों ने खुशी जताई
वकीलों
के
इस
पहल
पर
उन
मुवक्किलों
ने
खुशी
जताई
है,
जो
अंग्रेजी
भाषा
से
अनजान
होने
के
कारण
अदालत
में
होने
वाली
बहसों
को
समझ
ही
नहीं
पाते।
दिल्ली
सरकार
में
निम्म
श्रेणी
लिपिक
के
रूप
में
कार्यरत
40
वर्षीय
कमल
किशोर
कहते
हैं,
"मैं
अदालत
कक्ष
में
एक
मूर्ख
की
तरह
बैठा
रहता
हूं।
मैं
एक
हद
तक
अंग्रेजी
समझ
सकता
हूं,
लेकिन
वहां
लोग
इतनी
रफ्तार
में
अंग्रेजी
बोलते
हैं
कि
वह
हमारी
समझ
से
परे
होता
है।
यह
समझ
पाना
हमारे
लिए
कठिन
हो
जाता
है
कि
मेरा
वकील
क्या
बहस
कर
रहा
है
या
वह
सही
टिप्पणी
कर
भी
रहा
है
या
नहीं।"
जानकारी
के
अनुसार
राजस्थान,
इलाहाबाद
और
मध्य
प्रदेश
उच्च
न्यायालय
में
हिंदी
का
इस्तेमाल
हो
रहा
है
लेकिन
राष्ट्रीय
राजधानी
में
अभी
तक
इसकी
शुरुआत
नहीं
हुई
है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।