पार्टी के मूल विचारों के खिलाफ लिखने का अधिकार नहीं : भाजपा
भाजपा महासचिव अरुण जेटली ने संवाददाताओं से चर्चा में कहा, "किताब मुद्दा नहीं है। मूल विषय है कि आप क्या कहते हैं और क्या लिखते हैं। कोई भी राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ता को यह अधिकार नहीं दे सकता कि पार्टी का वरिष्ठ सदस्य होते हुए पार्टी के मूल विचारों के खिलाफ लिखे और उसकी सार्वजनिक चर्चा करे।"
उन्होंने कहा, "10 जून 2002 को हमने प्रस्ताव पारित कर स्पष्ट कर दिया था कि मोहम्मद अली जिन्ना देश के विभाजन के प्रमुख सूत्रधार थे। पार्टी का कोई वरिष्ठ नेता इसके विपरीत वक्तव्य दे या लिखे, यह पार्टी और पार्टी की विचारधारा के खिलाफ है।"
जेटली ने कहा, "हमारा स्पष्ट मानना है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश को जोड़ने का काम किया था। उन्हें बंटवारे के लिए जिम्मेदार ठहराना भी पार्टी की विचारधारा के खिलाफ है। जसवंत सिंह द्वारा अपनी पुस्तक में यह विचार व्यक्त करना कि देश के अल्पसंख्यक देश में ही खुद को बेगाना महसूस करते हैं, यह भी पार्टी की विचारधारा के खिलाफ है।"
उन्होंने कहा, "भाजपा किताब लिखने या अन्य बुद्धिजीवी क्रियाक्रलापों के खिलाफ नहीं है। पार्टी से बाहर पार्टी की विचारधारा के खिलाफ कोई लिखे तो हमें कोई एतराज नहीं है लेकिन पार्टी में रहकर ऐसा नहीं लिख सकते।"
यह पूछे जाने पर कि पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी द्वारा जिन्ना के संबंध में व्यक्त किए गए विचारों और जसवंत सिंह के विचारों में आपको क्या अंतर लगता है, जेटली ने कहा, "दोनों में बुनियादी अंतर है। आडवाणीजी ने पाकिस्तान की संविधान सभा में मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा दिए गए भाषण को ही जिन्ना के संदर्भ में कूटनीतिक तरीके से पेश किया था। जबकि जसवंत सिंह ने जिन्ना के बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं।"
जसवंत को निष्कासित करने से पहले कारण बताओ नोटिस न जारी किए जाने के सवाल पर जेटली ने कहा, "पार्टी संविधान के मुताबिक संसदीय बोर्ड को अनुशासन संबंधी सभी मामलों में ऐसे फैसले लेने का पूरा अधिकार है। चुनाव के दौरान जब कोई पार्टी के खिलाफ हो जाता है तो उसे कारण बताओ नोटिस नहीं दिया जाता है बल्कि सीधे कार्रवाई होती है।"
गुजरात सरकार द्वारा जसंवत की पुस्तक 'जिन्ना-इंडिया, पार्टिशन, इंडीपेंडेंस' पर लगाए गए प्रतिबंध को जायज ठहराते हुए जेटली ने कहा, "यह राज्य सरकारों का अधिकार है। गुजरात सरकार की तरफ से विस्तार से स्पष्टीकरण दिया जा चुका है। किताबों पर प्रतिबंध लगाने का कानून में प्रावधान है।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
*