यूनियनों को विकास में रचनात्मक साझेदार होना चाहिए : अमर्त्य सेन
पेंग्विन इंडिया के वार्षिक व्याख्यान में 'न्याय और भारत' विषय पर बुधवार शाम को अपने भाषण में सेन ने कहा,"तकरीबन हर व्यक्ति का जीवन यूनियनों से प्रभावित होता है, वह प्राथमिक विद्यालयों में हो या अन्य संस्थानों में। यूनियनों को एक अर्थपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।"
यूनियनों को कामगारों के लिए न्याय की गारंटी होने के मत पर सेन ने कहा कि इस संबंध में दो दृष्टिकोण हैं। "कुछ का कहना है कि यूनियनों का दुरुपयोग हो रहा है। उन्हें समाप्त कर देना चाहिए। यूनियनों का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि उन्हें खत्म करने की कोई आवश्यकता नहीं है, बहरहाल उन्हें थोड़ा कम किया जा सकता है।"
उन्होंने कहा,"मेरा मानना है कि यूनियनों को संगठनों में रचनात्मक साझेदार होना चाहिए।"
राजनीतिक दलों द्वारा सामाजिक अन्याय और मूल सुविधाओं की अनुपलब्धता का मुद्दा नहीं उठाने पर सेन ने अफसोस जताया।
उन्होंने कहा, "न्याय मांग करता है कि हम जिस दुनिया में रहते हैं वहां से अन्याय खत्म हो..लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि राजनीतिज्ञ थोड़े असंतोष के साथ सुविधाओं की कमी और सामाजिक अन्याय को स्वीकार कर लेते हैं।"
विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री के अनुसार बच्चों में कुपोषण, प्राथमिक स्कूली शिक्षा सुविधा की अनुपलब्धता, लिंग असमानता, माताओं में कुपोषण, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता में कमी वास्तविक मुद्दे हैं।
उन्होंने कहा, "लेकिन जोर प्रदूषण की समस्या या भूमि अधिग्रहण या भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के खिलाफ आंदोलन पर दिया जाता है।"
भाषण के तत्काल बाद एक चर्चा में सेन ने मुंबई पर नवंबर में आतंकवादी हमले के बाद मुंबई के नागरिकों की परिपक्व प्रतिक्रिया की सराहना की। उन्होंने गुजरात में वर्ष 2002 में हुए दंगों पर निराशा जाहिर की।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।