न्यायाधीशों की संपत्ति की घोषणा से संबंधित विधेयक पर पीछे हटी सरकार (लीड-1)
कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा,"सदस्यों द्वारा व्यक्त भावनाओं के मद्देनजर इस मुद्दे पर सहमति बनाने के लिए मैं विधेयक को पेश करना स्थगित करता हूं।"
सत्तारूढ़ कांग्रेस की जयंती नटराजन तक ने न्यायाधीश (परिसंपत्तियों और देनदारियों की घोषणा) विधेयक 2009 के अनुच्छेद छह के प्रति अपनी आपत्ति दर्ज कराई।
विधेयक के अनुच्छेद छह का सभी दलों के सदस्यों ने विरोध किया। इसमें कहा गया है कि न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति घोषित करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकेगा और उनकी संपत्ति की घोषणा को सार्वजनिक भी नहीं किया जाएगा।
मोइली के विधेयक पेश करने की अनुमति मांगने पर इसका विरोध करते हुए नेता विपक्ष भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अरुण जेटली ने कहा,"अनुच्छेद छह के तहत एक न्यायाधीश किसी उपयुक्त अधिकारी के समक्ष अपनी संपत्ति की घोषणा करेगा और उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकेगा। यदि मैं कोई चुनाव लड़ता हूं तो मैं पहले अपनी संपत्ति की घोषणा करता हूं और इसे सार्वजनिक किया जाता है। विधेयक का अनुच्छेद छह संविधान के अनुच्छेद 19 की भिन्न व्याख्या करता है। हम एक ही अनुच्छेद की दो व्याख्याएं नहीं कर सकते।"
उन्होंने कहा कि सार्वजनिक पद हासिल करने के इच्छुक और पहले से सार्वजनिक पदों पर विराजमान लोगों के लिए कानून की अलग-अलग व्याख्या नहीं की जा सकती।
जेटली ने इस बात भी आपत्ति जताई कि विधेयक पहले न्यायपालिका में वितरित किया गया और उसकी सिफारिशों के आधार पर इसे तैयार किया गया है। बहरहाल मोइली ने इसका खंडन किया।
मनोनीत सदस्य प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी ने विधेयक को 'भ्रष्टाचार का षडयंत्र' करार दिया।
उन्होंने कहा कि इस विधेयक से संदेह होता है कि न्यायपालिका कार्यपालिका का एहसान लेना चाहती है। यह विधेयक न्यायपालिका को कार्यपालिका के अधीन कर देगा।
इससे ठीक पहले कांग्रेस की जयंती नटराजन ने कहा था कि विधेयक का अनुच्छेद छह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और विधेयक को संसद की स्थाई समिति के हवाले किया जाना चाहिए।
उपा सभापति के.रहमान खान ने भी इस सुझाव का समर्थन किया लेकिन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सीताराम येचुरी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि संसद की स्थाई समिति के सुझाव सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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