विरोधाभासों के बीच राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की कवायद

By Staff
Google Oneindia News

भोपाल, 31 जुलाई (आईएएनएस)। भुखमरी और खाद्य असुरक्षा का रथ भी उतनी ही तेजी से बढ़ा है जितनी तेजी से भारत की आर्थिक विकास दर! क्या आपको यह वक्तव्य विरोधाभासी लगता है? सरकार कहती है कि भारत की मुद्रास्फीति यानी महंगाई की दर शून्य से कम हो गई परन्तु पिछले तीन महीनों में खाने-पीने के सामान की दरों में 40 से 50 फीसदी की वृद्धि हो गई है! क्या आपको यह भी विरोधाभासी वक्तव्य लगता है?

हमारे यहां महंगाई में कमी का आधार गेंहू, चावल या सब्जियां नहीं हैं बल्कि यदि पेट्रोलियम, सीमेंट या लोहे के दामों में कमी को महंगाई में कमी का आधार माना जाता है। विरोधाभास लगना ही चाहिए क्योंकि हमारी वर्तमान और राज्य प्रायोजित विकास की परिभाषा जीवन की व्यावहारिक जरूरतों के आधारों पर नहीं गढ़ी गई हैं। यह परिभाषा नैतिक भी नहीं है। अब अगला संभावित विरोधाभास यह हो सकता है कि सरकार का प्रस्तावित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून वास्तव में वंचितों और बहिष्कृत वगरें की खाद्य असुरक्षा का नया कारण बन जाए।

इस माहौल में कांग्रेसनीत केंद्र सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून बनाने की कवायद शुरू कर दी है। जो नजरिया खाद्य सुरक्षा कानून के संदर्भ में सरकार ने सामने रखा है वह एक राजनैतिक वायदे की महज खानापूर्ति ही नहीं है बल्कि खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक बड़ी रुकावट भी बनेगा।

सरकार खाद्य सुरक्षा का मतलब मानती है - गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों को 2 रुपये या 3 रुपये की कीमत पर 25 किलो अनाज हर माह; बस इतना ही। इस मान से एक व्यक्ति को महज साढ़े चार किलो अनाज मिल पाएगा जबकि एक व्यक्ति की कुल मासिक खाद्यान्न जरूरत साढ़े चौदह किलो होती है। सरकार कानून बनाकर भी दो तिहाई पेट खाली रखने वाली है।

खाद्य सुरक्षा में केवल गेहूं और चावल की बात कही गई है जबकि स्थानीय स्तर पर समुदाय द्वारा कई तरह के मोटे अनाजों का उपयोग किया जाता है। उन्हें इस कानून में शामिल करने की कोई कवायद होती नहीं दिख रही है। सरकार केवल गेहूं-चावल को अपने प्रचार तंत्र के केन्द्र में रख रही है ताकि आगे चलकर यह तर्क भी दिया जा सके कि जितना सरकार के गोदामों में ये अनाज होंगे उतने ही लोगों को मिलेंगे। इसके बाद आयात करने का मौका भी उन्हें मिल जाएगा। यह रणनीति अनाज के बाजार में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और सत्ताखोरों के हितों को साधने की तैयारी के रूप में लागू की गई है। यही कारण है कि अन्य मोटे अनाजों के उत्पादन, उन्हें संरक्षण और उनकी सरकारी खरीदी के बारे में सरकार का खाद्य सुरक्षा कानून का दृष्टिपत्र चुप्पी साध गया।

कांग्रेस ने अगर गरीबी और भुखमरी कम करने के मद्देनजर खाद्य सुरक्षा कानून बनाने की कवायद की है तो उसे अपने मन और मस्तिष्क को पारदर्शी बनाना होगा, अभी यह अपारदर्शी है। इस कानून से तो वास्तव में सरकार को ज्यादा अनाज बांटने की जरूरत पड़ना चाहिये परन्तु विश्लेषण बताते हैं कि जिस तरह से इस कानून को बनाने की कोशिश हो रही है उससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत बंटने वाले अनाज की मात्रा ढाई करोड़ टन प्रतिवर्ष से घटकर 1.956 करोड़ टन पर आ जाएगी और खाद्यान्न रियायत में भी 5 हजार करोड़ रुपये की कमी हो जाएगी। मतलब साफ है कि सरकार अपनी जिम्मेदारी को कानून बनाकर भी कम कर लेगी।

यह भी एक बड़ी चिंताजनक बात है कि प्रस्तावित कानून में परिवार के लिये खाद्यान्न की मात्रा तय की गई है। 2 सदस्यों के परिवार के लिये भी 25 किलो और 10 सदस्यों के परिवार के लिये भी इतनी ही मात्रा। सामाजिक न्याय के सिद्घान्त को आधार बनाते हुए जरूरी है कि व्यक्तिगत हक परिभाषित किए जाएं और 7 किलो अनाज प्रति सदस्य (यानी कुल जरूरत का आधा) के मान से अधिकार सुनिश्चित हों।

वर्तमान गरीबी रेखा अपने आप में गरीबी से बड़ा संकट है फिर भी केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि केवल उन्हीं परिवारों को खाद्य सुरक्षा कानून के तहत हक मिलेंगे, जिन्हें सरकार के आंकड़ों के वैज्ञानिक गरीब मानते हैं। हम सब जानते हैं कि मध्य प्रदेश में 66 लाख परिवार गरीबी की रेखा के नीचे हैं और केंद्र सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि यहां 41 लाख से ज्यादा परिवार गरीब हैं। इसी तरह केन्द्र सरकार के मुताबिक 6.52 करोड़ परिवार गरीबी की रेखा के नीचे हैं जबकि तमाम राज्यों में साढ़े 10 करोड़ परिवारों को गरीबी की रेखा के राशन कार्ड राज्य सरकारों ने बांटे हैं।

हर राज्य सरकार, फिर चाहे वहां किसी भी दल की सरकार हो, कहती रही है कि केंद्र सरकार (खासतौर पर योजना आयोग) के आंकलन बेहद विसंगतिपूर्ण और गलत हैं। अब अगर केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच यह विवाद इतना गहरा बना रहा, तो इसका मतलब यह भी है कि लगभग 5 करोड़ परिवार खाद्य सुरक्षा कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे और यह उनके लिये ख्वाब ही रहेगा कि उनकी थाली कभी पेट भरने लायक हो पाएगी।

प्रस्तावित कानून केवल सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कानूनी जामा पहनाने की कवायद मात्र है। इससे (केवल 25 किलो गेहूं-चावल से) भुखमरी, कुपोषण या खून की कमी जैसे सवाल हल नहीं हो पाएंगे। राष्ट्रीय पोषण संस्थान मानता है कि इसके लिये हमें भोजन की थाली में दाल और खाद्य तेल की मात्रा को बढ़ाना होगा यानी सरकारी राशन की सूची में प्रति व्यक्ति के मान से आधा किलो दाल और 150 ग्राम तेल अनिवार्य रूप से जोड़ा जाना चाहिए।

जब सरकार गरीबी की रेखा की बात करती है तो उसमें से बच्चों की खाद्य सुरक्षा का सवाल पूरी तरह से छूट जाता है क्योंकि 6 वर्ष की उम्र के बच्चों की खाद्यान्न सम्बन्धित जरूरतें बेहद खास होती हैं। यही वह उम्र होती है जब पूरे जीवन के शारीरिक और मानसिक विकास की नींव पड़ती है। बच्चों को जीवन का पूरा अधिकार देने के लिये उनके लिये लोकव्यापी कदम की जरूरत है उन्हें गरीबी की रेखा की आरी से नहीं काटा जाना चाहिये।

हमारी सामाजिक व्यवस्था में एकल महिलाओं, विधवा महिलाओं और वृद्घों वाले वर्ग में भेदभाव और भुखमरी की मानो शाश्वत मौजूदगी है। वे न केवल सामाजिक बहिष्कार का सामना करते हैं बल्कि आजीविका के संदर्भ में भी असुरक्षित हैं क्योंकि उन्हें भूमि के अधिकार नहीं मिले हैं और रोजगार गारंटी कानून का क्रियान्वयन भी उनके पक्ष में नहीं है।

सर्वोच्च न्यायालय कहता है कि इन वगोर्ं के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं, विकलांगों, सामाजिक रूढ़िवादिता से पीड़ित परिवारों के साथ-साथ तमाम पिछड़ी हुई आदिम जन जातियों को सबसे सस्ता राशन सर्वसुलभ होना चाहिये; परन्तु सरकार के नजरिये से ये वर्ग अभी भी बाहर ही हैं। यह भी देखना होगा कि विस्थापितों और शरणार्थियों को भी भारत का नागरिक मानते हुये खाद्य सुरक्षा कानून के दायरे में लाया जाए। इस कानून को महज एक योजना के रूप में न देखते हुये कृषि क्षेत्र विकास और खाद्यान्न उत्पादन को संरक्षण देने वाले कदम के रूप में भी लागू किया जाएगा। इसके बिना हमारे कदम बेहद सतही होंगे।

(सचिन कुमार जैन गैर सरकारी संगठन 'विकास संवाद' से जुड़े हैं।)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X