लोकसभा में संयुक्त बयान का मुद्दा छाया रहा , विपक्ष का बहिर्गमन (राउंडअप)

By Staff
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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मिस्र सहित हाल के दिनों में हुए विदेश दौरों पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने कहा कि विदेश नीति के मसले पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार पारम्परिक सिद्धांतों से हटी नहीं है।

कृष्णा ने अपने जवाब को स्वतंत्र विदेश नीति पर केंद्रित रखा और विपक्षी सदस्यों की ओर से आतंकवाद को समग्र वार्ता से अलग रखने और बलूचिस्तान के जिक्र संबंधी उठाई गई आपत्तियों को नजरअंदाज किया।

उन्होंने कहा, "सदन में कुछ सम्मानित सदस्यों ने साझा बयान पर कुछ आपत्तियां जताई हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नेता सदन प्रणब मुखर्जी ने इन आपत्तियों पर विस्तार से स्थिति स्पष्ट कर दी है।"

कृष्णा के इतना कहने पर विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी खड़े हुए और उन्होंने जोर देकर कहा कि विपक्ष की मुख्य चिंताओं को न तो प्रधानमंत्री ने और न ही विदेशमंत्री ने दूर किया है।

आडवाणी ने आरोप लगाया कि बलूचिस्तान को संयुक्त वक्तव्य में शामिल किए जाने और समग्र वार्ता को आतंकवाद से अलग करने की आपत्तियों का जवाब नहीं दिया गया है।

उन्होंने कहा, "जब हमारी आपत्तियों पर कोई जवाब नहीं आएगा तो ऐसे में चर्चा को जारी रखने का कोई अर्थ नहीं है। हम सदन से बहिर्गमन करते हैं।" इसके बाद उनके नेतृत्व में राजग सदस्य सदन से बाहर चले गए।

इससे पहले, चर्चा के दौरान हस्तक्षेप करते हुए लोकसभा में सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने कहा, "हमने आतंकवाद से कोई समझौता नहीं किया है। न ही हम वार्ता को अवरोधित करेंगे।"

उन्होंने कहा, "जो राजग सरकार ने किया था वहीं संप्रग सरकार कर रही है। कूटनीति इसी तरह से चलती है। हम पाकिस्तान को मिटा नहीं सकते। पाकिस्तान का अस्तित्व बरकरार रहेगा। युद्ध कोई विकल्प नहीं है।"

उन्होंने कहा कि वार्ता शुरू करने का अर्थ पूरी तरह से समग्र वार्ता आरंभ करना नहीं है। वार्ता के लिए रास्ते खोलने का अर्थ आतंकवाद के मुद्दे पर अपनी स्थिति से मसझौता कर लेना भी नहीं है।

मुखर्जी ने कहा, "पाकिस्तान को अपनी भूमि से संचालित होने वाले आतंकवादी ढांचों को खत्म करना ही होगा।"

बलूचिस्तान के मुद्दे पर सरकार का बचाव करते हुए मुखर्जी ने कहा, "हम आतंकवाद के शिकार हैं। आतंकवाद निर्यात करने का हमारा कोई इरादा नहीं है।"

साझा बयान को लेकर उपजे विवाद पर सफाई देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को कहा था कि आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। उन्होंने स्पष्ट किया किया था कि वार्ता के लिए तैयार हो जाने का मतलब यह नहीं है कि आतंकवाद के मसले पर सरकार के रुख में बदलाव आ गया है। उनके मुताबिक पाकिस्तान के साथ बातचीत के सिवाय और कोई विकल्प नहीं है।

भाजपा के यशवंत सिन्हा ने इस विषय पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा था कि शर्म अल-शेख में जारी किया गया संयुक्त बयान शर्मसार कर देने वाला है और सात समुद्रों के पानी से भी इस शर्म को नहीं धोया जा सकता जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) के मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान के बीच जारी हुए साझा बयान को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाना चाहिए।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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