मनमोहन ने भारत-पाक साझा बयान का बचाव किया : प्रधानमंत्री (राउंडअप)

By Staff
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प्रधानमंत्री के हाल के विदेश दौरों को लेकर लोकसभा में हुई बहस के दौरान विपक्षी सदस्यों द्वारा उठाई गई आपत्तियों का जवाब देते हुए मनमोहन सिंह ने बुधवार को यह सफाई पेश की। प्रधानमंत्री ने कहा कि विदेश नीति के मामले में आम सहमति की परंपरा को उनकी सरकार ने खंडित नहीं किया है।

प्रधानमंत्री ने कहा, "पाकिस्तान के साथ सार्थक बातचीत तब तक नहीं हो सकती है जब तक कि वह भारत के खिलाफ आतंकी हमलों के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल न होने देने की अपनी वचनबद्धता को पूरा नहीं करता।"

उन्होंने कहा, "इस मामले में हमने अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया है।" मनमोहन सिंह ने सदन को आश्वस्त करते हुए और पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा कि भविष्य में अगर मुंबई जैसा कोई दूसरा हमला होता है तो यह असहनीय होगा और इसके बाद द्विपक्षीय संबंधों को बहाल रखना मुश्किल होगा।

समग्र वार्ता प्रक्रिया से आतंकवाद को अलग रखने के विपक्षी सवालों का जवाब देते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि पाकिस्तान अच्छी तरह जानता है कि आतंकवाद पर कार्रवाई पूर्णरूपेण अनिवार्य है और इसका वार्ता बहाली से कोई नाता नहीं है।

मनमोहन सिंह ने कहा कि पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ उसी तरह का दृढ़ निश्चय पूर्वी सीमा पर भी दिखाना चाहिए जैसा कि वह पश्चिमी सीमा पर आतंकवदियों के खिलाफ अभियान में दिखा रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बारे में पाकिस्तान की ओर से सौंपे गए दस्तावेज में उसने जांच के बाद पहली बार औपचारिक तौर पर स्वीकार किया है कि आतंकी हमले में उसके नागरिक लिप्त हैं।

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की ओर से सौंपे गए 34 पृष्ठ के दस्तावेज में पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी द्वारा की गई जांच की रूपरेखा, उसके विवरण, घटनाक्रम का ब्योरा, प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रतिलिपि, तस्वीरें और इस्तेमाल किए गए संचार उपकरणों की जानकारी शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि दस्तावेज में जब्त किए गए साहित्य, अन्य सामान और खुफिया तौर-तरीकों की भी जानकारी दी गई है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि दस्तावेज यह स्थापित करता है कि जांच में यह साबित हुआ है कि हमले के पीछे नि:संदेह लश्कर-ए-तैयबा का हाथ है और उसी ने हमले के लिए धन मुहैया कराया। "हमें बताया गया है कि जांच पूरी होने वाली है।"

प्रधानमंत्री ने कहा, "ऐसा पहली बार हुआ है कि पाकिस्तान ने किसी आतंकी हमले की जांच के बाद औपचारिक तौर पर हमें जानकारी दी है। उसने पहली बार स्वीकार किया है कि उसके देश में स्थित आतंकवादी संगठन में शामिल उसके नागरिकों ने भारत में जघन्य हमले को अंजाम दिया।"

मनमोहन सिंह ने कहा कि पाकिस्तान को मुंबई हमले के साजिशकर्ताओं को ऐसी सजा देनी चाहिए जिससे कि लोग सबक ले सकें। उन्होंने जोर दिया कि भारत के लिए चेतावनी बनने वाले सभी आतंकवादी संगठनों को बंद करना होगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि वास्तविकता यह है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार पाकिस्तान से जो अपेक्षा कर रही थी, यह उससे कहीं अधिक है। पाकिस्तान मसले पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को राजग से नसीहत लेने की कोई जरूरत नहीं है।

अंतिम उपयोग निगरानी संधि (एंड यूज मॉनिटरिंग एग्रीमेंट) पर विपक्ष की आपत्तियों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस मसले पर देश की संप्रभुता से समझौता नहीं हुआ है और अमेरिकी निरीक्षकों को देश की सैन्य सुविधाओं के निरीक्षण की अनुमति नहीं दी जाएगी।

उन्होंने कहा कि रक्षा सामग्रियों के 'जेनेरिक' संस्करण के संबंध में एकतरफा निरीक्षण का प्रावधान नहीं है। किसी भी निरीक्षण को संयुक्त रूप से करने का भारत के पास संप्रभु अधिकार है। कोई भी जांच एक आग्रह के आधार पर संपन्न होगी, जिसकी तिथि और स्थान आपसी सहमति से निर्धारित किया जाएगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की सेनाओं को सभी प्रकार की प्रौद्योगिकी हासिल करने की आवश्यकता है इसलिए रक्षा उपकरणों के स्रोतों में विविधता आवश्यक है।

इससे पहले संसद में विपक्ष और समर्थक पार्टियों ने प्रधानमंत्री पर तीखे प्रहार करते हुए उन पर आरोप लगाया कि वह देश के उस सामूहिक रुख से समझौता कर रहे हैं जिसके तहत सरकार अब तक कहती आ रही थी कि पाकिस्तान जब तक सीमापार आतंकवाद को खत्म नहीं करता तब तक उससे वार्ता नहीं होगी।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सरकार पर पाकिस्तान के प्रति भारत की घोषित नीति से समझौता करने का आरोप लगाते हुए कहा कि शर्म अल-शेख में जारी किया गया संयुक्त बयान शर्मसार कर देने वाला है और सात समुद्रों के पानी से भी इस शर्म को नहीं धोया जा सकता।

पूर्व विदेश मंत्री और भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि 16 जून को पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और 16 जुलाई को गिलानी के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की हुई मुलाकात के बीच आतंकवाद के मुद्दे पर सरकार का रुख पूरी तरह बदल गया।

सिन्हा ने कहा कि 16 जून को येकात्रिनबर्ग में मनमोहन सिंह ने जरदारी से मुलाकात के बाद कहा था कि पाकिस्तान की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवादी हमलों में नहीं किया जाना चाहिए और एक माह के भीतर यह रुख पूरी तरह बदल गया और इसमें आतंकवाद के मुद्दे को अलग कर दिया गया।

सिन्हा ने कहा, "येकात्रिनबर्ग में प्रधानमंत्री आश्वस्त दिख रहे थे और हमें उन पर गर्व था। लेकिन एक माह के अंदर पूरी तरह से नीति का बदल जाना आश्चर्य की बात है।"

सिन्हा ने संयुक्त बयान में बलूचिस्तान के मुद्दे को शामिल किए जाने पर भी सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा, "क्यों बलूचिस्तान के मुद्दे को बयान में शामिल किया गया। कागज पर लिखे बयान की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि पाकिस्तानी नेता बलूचिस्तान में उपद्रव के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराने लगे।"

विपक्षी की वाहवाही के बीच सिन्हा ने कहा, "शर्म अल-शेख में मिली शर्मिदगी को सात समुद्रों के पानी से भी नहीं धोया जा सकता। विदेश नीति में इतनी भयानक भूल कभी नहीं हुई।"

समाजवादी पार्टी (सपा) के मुलायम सिंह यादव ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच जारी हुए साझा बयान को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, "साझा बयान से पाकिस्तान को लाभ हुआ है और हमें नुकसान। यह संदेश देश भर में चला गया है। आप लाख सफाई देते रहिए। यह सरकार पारम्परिक विदेश नीति से हटी है।"

उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री जी, जनता साथ है, सेना तैयार है। बेपरवाह होकर आप इस साझा वक्तव्य को रद्दी की टोकरी में फेंक दीजिए।"

मुलायम ने कहा, "पाकिस्तान के साथ जब युद्ध होता है तो हम जीत जाते हैं लेकिन बातचीत होती है तो हम हार जाते हैं।"

जनता दल (युनाइटेड) के शरद यादव ने कहा कि वार्ता और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते। उन्होंने संप्रग सरकार पर विदेश नीति के मामले में आम सहमति से हटने का भी आरोप लगाया।

उन्होंने कहा, "मुंबई हमले के बाद आपने ही तय किया था कि तब तक वार्ता नहीं करेंगे जब तक पाकिस्तान अपनी सरजमीं से आतंकवादी गतिविधियों को नहीं रोकता। सरकार ने ही यह संकल्प लिया, लेकिन वह उस पर नहीं चली। शर्म अल-शेख में क्या हुआ। आपने तय कर लिया कि आतंकवाद और वार्ता साथ-साथ चलेगी।"

उन्होंने कहा, "पिछले 62 वर्षो से हमारी विदेश नीति आम सहमति से चल रही है। लेकिन अब यह आम सहमति खंडित हो रही है। ऐसा होता है तो तकलीफ होती है। विदेश नीति से जुड़े मसलों पर आम सहमति होना चाहिए।"

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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