राजस्थान में पेंशन नियमों के सरलीकरण के लिए समिति गठित
काक ने प्रश्नकाल के दौरान विधायकों द्वारा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग से सम्बन्धित पूछे गये पूरक प्रश्नों के जवाब देते हुए स्पष्ट किया कि पेंशन नियमों के सरलीकरण के लिए प्रमुख शासन सचिव (वित्त) की अध्यक्षता में तथा विकलांग पेंशन के सम्बन्ध में अतिरिक्त मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया है। उन्होंने बताया कि समिति तय करेगी कि पेंशन नियमों का सरलीकरण कैसे हो।
इससे पहले सदस्यों के पूरक प्रश्नों का उत्तर देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामकिशोर सैनी ने बताया कि पेंशन के लिए जो आवेदन पत्र प्राप्त होते हैं उनकी पहले सत्यापन जांच की जाती है तथा पात्रता नहीं रखने वाले आवेदनों को निरस्त कर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त आवेदन के फोटो के अभाव में या अन्य आवश्यक प्रमाण पत्र संलग्न नहीं होने पर भी उन्हें जांच के दौरान निरस्त कर दिया जाता है।
इससे पहले विधायक ओम बिरला के मूल प्रश्न के लिखित जवाब में सैनी ने बताया कि राजस्थान वृद्घावस्था एवं विधवा नियम, 1974 में आवेदन के पश्चात 30 दिन की अवधि में जांच कार्य पूर्ण कर पेंशन स्वीकृत करने का प्रावधान है, जबकि राजस्थान अपाहिज, अपंग एवं अंधे व्यक्तियों के पेंशन नियम 1955 में पेंशन स्वीकृत करने हेतु समयावधि निर्धारित नहीं है। उन्होंने गत 6 माह में वृद्घावस्था, विधवा एवं विकलांग पेंशन के प्राप्त आवेदन पत्रों एवं स्वीकृत आवेदन पत्रों का विवरण सदन की मेज पर रखा।
उन्होंने कहा कि वृद्घावस्था, विधवा एवं विकलांग पेंशन स्वीकृति हेतु आवेदक के पुत्र या पुत्री की आयु 25 वर्ष से कम होना आवश्यक है। लेकिन परिवार की परिभाषा के अन्तर्गत पुत्री को सम्मिलित नहीं किया गया है। सैनी ने बताया कि जिन आवेदकों की इकलौती संतान पुत्रियां हैं और वे शादी के पश्चात अपने ससुराल रहती हैं तो उन्हें पेंशन स्वीकृत की जाती है। उन्होंने बताया कि पेंशन नियमों में आवेदकों के 25 वर्ष से अधिक आयु के पुत्र होने एवं उसके शरीरिक रूप से नि:शक्त होने के कारण, कमाने में असमर्थ होने पर, पेंशन स्वीकृत करने का प्रावधान है। पुत्रियों को परिवार की परिभाषा में सम्मिलित नहीं किया गया है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।