तसलीमा ने मांगी घर वापसी की इजाज़त
अपने लेखन के कारण हमेशा विवादों में रहीं तस्लीमा बांग्लादेश और भारत दोनों ही सरकारों से खफा हैं। भारत को अपना दूसरा घर बताने वाली तस्लीमा को वहां भी मुस्लिम कट्टरपंथियों की धमकियों का सामना करना पड़ा और उन्हें 2007 में वहां से भी जाना पड़ा। तसलीमा ने ढाका के साप्ताहिक ब्लिट्ज को बताया, "भारत के सभी राजनीतिक दलों की समस्या यह है कि वे मुस्लिम कट्टपंथियों को संतुष्ट रखना चाहते हैं।" उन्होंने कहा, "भारत में 25 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है जिसका एक बड़ा वर्ग वोट देने के लिए पार्टी के चयन के वास्ते अपने नेताओं पर निर्भर रहता है। इसलिए सभी राजनीतिक दल इन धार्मिक नेताओं का दिल जीतने की कोशिश करते हैं, जो अक्सर कट्टर होते हैं।"
उन्होंने कहा, "भारत सरकार ने मुझे अपने यहां रहने की इजाजत इसलिए नहीं दी क्योंकि वह इस्लाम-विरोधी कहलाने से डरती थी। मुस्लिम कट्टरपंथियों का दावा है कि मैंने इस्लाम को नष्ट कर दिया है। राजनीतिज्ञ अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थन करने की जगह सोचते हैं कि उसके खिलाफ फतवा जारी होना चाहिए। क्योंकि उनके लिए मेरा समर्थन करने का अर्थ इस्लाम-विरोधी का ठप्पा लगवाना होगा जिससे मुस्लिम वोट-बैंक हाथ से निकल जाएगा। "
स्वयं को पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष करार देते हुए तसलीम ने कहा है हालांकि वह तालिबान के खिलाफ नहीं हैं जो इस्लाम के अतिवादी स्वरूप को लागू करना चाहता है। वह चाहती हैं कि तालिबान को पैदा करने वाली प्रणाली नष्ट होनी चाहिए।
उन्होंने बांग्लादेश के धर्म-आधारित बहुत से कानूनों का हवाला देते हुए विदेश मंत्री दीपू मोनी द्वारा उसे 'धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र' करार देने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्ष होने की जगह बांग्लादेश को उदार मुस्लिम देश होना चाहिए। वर्ष 1994 में 'लज्जा' उपन्यास के प्रकाशन पर मिली जान से मारने की धमकियों के बाद तसलीमा को निर्वासित होना पड़ा था। इस उपन्यास में मुस्लिम बहुल देश में एक हिंदू परिवार को प्रताड़ित किए जाने का बखान किया गया था।
उन दिनों शेख हसीना ही देश की प्रधानमंत्री थीं। हसीना सरकार द्वारा गत दिसंबर में इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने की प्रतिबद्धता के साथ सत्ता में आने के बाद तसलीमा ने यह अनुरोध किया है। उन्होंने कहा, "देश में एक भी सच्ची धर्मनिरपेक्ष पार्टी नहीं है ऐसे में एक ही पार्टी है जिस पर हम उम्मीद लगा सकते हैं। हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।"
तसलीमा ने कहा, "मुझे लगता है कि हसीना के कार्यकाल में मैं वतन लौट सकूंगी। अगर अभी ऐसा न हुआ तो मुझे नहीं लगता कि भविष्य में कभी ऐसा हो पाएगा।" भारतीय कट्टरपंथी मुस्लिमों की धमकियों के बाद तसलीमा ने नवंबर 2007 में कोलकाता छोड़ दिया। कई महीने सरकार की हिफाजत में गुजारने के बाद पिछले साल मार्च में वह स्वीडन चली गईं। जहां उन्हें दो साल तक रहने की इजाजत, मासिक भत्ता और मकान दिया गया।
उन्होंने
कहा,
"मैं
15
वर्षो
से
निर्वासित
जीवन
बिता
रही
हूं।
वे
मुझे
उन
अपराधों
के
लिए
दंडित
कर
रहे
हैं
जो
मुस्लिम
कट्टरपंथियों
ने
मेरे
खिलाफ
किए
हैं।
मैं
पश्चिम
में
बांग्लादेश
के
सभी
दूतावासों
में
जाकर
अपने
पासपोर्ट
के
नवीकरण
का
प्रयास
कर
चुकी
हूं।"
उन्होंने
कहा,
"मैं
बांग्लादेश
में
जन्मी
हूं
और
वहां
की
नागरिक
होने
के
नाते
वहां
रहना
मेरा
हक
है,
जिसे
समय-समय
पर
छीना
जाता
रहा
है।
मुझ
पर
प्रतिबंध
लगाने
का
उन्होंने
कभी
कोई
कारण
नहीं
बताया।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।