प्रदीप मैगज़ीन
वरिष्ठ खेल पत्रकार
क्या भारतीय क्रिकेट बोर्ड में किसी को इसका स्पष्टीकरण देने की परवाह है कि इस समय भारतीय टीम वेस्टइंडीज़ में क्यों खेल रही है?
ये सवाल इसलिए नहीं उठाया जा रहा है क्योंकि हम क्रिकेट नहीं देखना चाहते या हम ये नहीं चाहते कि भारतीय टीम वेस्टइंडीज़ जाए.
हम सवाल इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि सिर्फ़ चार एक दिवसीय मैच खेलने वेस्टइंडीज़ जाना बेकार लगता है.
फिर सवाल इस सिरीज़ के समय पर भी है. वैसे को हम सब ट्वेन्टी-20 विश्व कप में भारतीय टीम के ख़राब प्रदर्शन के कारणों पर चर्चा कर रहे हैं.
इस मामले में आम राय यही है कि मानसिक थकान और ज़्यादा क्रिकेट के कारण खिलाड़ियों के घायल होने से भारत का ख़राब प्रदर्शन रहा.
हालाँकि भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अधिकारियों ने तुरंत ही इस तर्क को ठुकरा दिया कि न्यूज़ीलैंड दौरे के ठीक बाद इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के कारण खिलाड़ी थक गए थे.
तथ्य
लेकिन ये तथ्य अपनी जगह पर क़ायम है. और तो और भारतीय क्रिकेट टीम के कोच गैरी कर्स्टन भी यही महसूस करते हैं कि ट्वेन्टी-20 में फ़्लॉप शो की वजह खिलाड़ियों की थकान थी.
लेकिन कोच कर्स्टन और अन्य कई लोगों की बातें गंभीरता से लेने की बजाए भारतीय बोर्ड ने कोच के मीडिया से बातचीत करने पर पाबंदी लगा दी.
ये बात समझ में नहीं आती कि बोर्ड क्या छिपाने की कोशिश कर रहा है. क्या इनका काम भारतीय क्रिकेट को सुधारना नहीं है?
क्या उसका काम भारतीय खिलाड़ियों से उस घोड़े की तरह व्यवहार करना है, जिसे कोड़े मार-मार कर और तेज़ दौड़ने को कहा जाता है, जब तक कि वो घोड़ा थककर गिर जाए.
उनकी प्रतिक्रिया से तो यही लगता है कि वे सिर्फ़ पैसा बनाने के लिए यहाँ हैं और उनका काम भारतीय क्रिकेट का हित देखना नहीं है.
मुझे ये चीज़ काफ़ी अजीब और समझ से बाहर लगती है, जब खिलाड़ियों की चोट का मामला बढ़ता है तो बोर्ड अधिकारी ये कहते हैं कि जो खिलाड़ी थके हुए हैं या घायल हैं, उन्हें आराम करना चाहिए.
सच बात है, उन्हें आराम करना चाहिए. अगर किसी खिलाड़ी ने अपनी चोट छिपाई है तो बोर्ड ने टीम फ़िजियो की रिपोर्ट पर अमल करते हुए उन खिलाड़ियों को टीम से बाहर क्यों नहीं किया, जो घायल खिलाड़ियों की सूची में हैं.
ट्वेन्टी-20 विश्व कप की समाप्ति के बाद ये बात सामने आई कि वीरेंदर सहवाग और ज़हीर ख़ान ही घायल खिलाड़ियों की सूची में नहीं थे बल्कि कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और युवराज सिंह भी 100 फ़ीसदी फ़िट नहीं थे.
कल्पना नहीं
ये जानकारी किसी रिपोर्टर की कल्पना नहीं है बल्कि टीम फ़िजियो की रिपोर्ट में यह दर्ज है. अब ये सवाल भी उठना चाहिए कि इन दो खिलाड़ियों को वेस्टइंडीज़ दौरे के लिए क्यों चुना गया.
भले ही उन्होंने अपने आप को इस दौरे से अलग नहीं किया हो, लेकिन क्या उन्हें आराम नहीं देना चाहिए?
क्या इससे भारतीय बोर्ड का अड़ियल रवैया नहीं आता कि चोट के बावजूद भारतीय क्रिकेट के दो स्टार खिलाड़ियों को दौरे के लिए चुना क्योंकि उनके बिना भारतीय टीम का भविष्य प्रभावित हो सकता है.
बेकार के मैच खेलने के लिए उन्हें क्यों चुना गया और उनकी चोट के गंभीर होने का ख़तरा भी मोल लिया गया.
क्या भारतीय क्रिकेट इन चार एक दिवसीय मैचों के लिए इतनी बड़ी क़ीमत देने को तैयार है? बहुत लोग ऐसा नहीं मानते.
ख़ाली स्टैंड्स को देखते हुए तो यही लगता है कि वेस्टइंडीज़ के क्रिकेट प्रशंसक भी इस सिरीज़ की अनदेखी कर रहे हैं.
दरअसल जमैका में क्रिकेट सिरीज़ शुरू होने से पहले वेस्टइंडीज़ के कई पत्रकार भी इस पर चकित थे कि ट्वेन्टी-20 विश्व कप के तुरंत बाद भारतीय टीम उनके देश में खेलने जा रही है.
वे यह भरोसा नहीं कर पा रहे थे कि एक टीम सिर्फ़ चार दिन के क्रिकेट के लिए यात्रा में इतना समय लगा रही है.
इसलिए शुरू में मैंने यह सवाल उठाया था कि क्या कोई इस बात पर स्पष्टीकरण देने की परवाह करेगा कि भारतीय टीम इस समय वेस्टइंडीज़ में क्यों है?
क्यो दोनों देशों के क्रिकेट बोर्डों के बीच कुछ पक रहा है? क्रिकेट, जहाँ खिलाड़ियों के कल्याण से ज़्यादा अहम पैसे का बल है, ये कौन जानता है कि कौन से समझौते किसके फ़ायदे के लिए हो रहे हैं.
लेकिन एक चीज़ तो तय है कि इससे भारतीय क्रिकेट का भला नहीं होगा.
(लेखक अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स के खेल सलाहकार हैं)