समलैंगिकता पर राष्ट्रव्यापी बहस हो : महिला आयोग
आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास ने संवाददाताओं से कहा, "यह बहुत ही जटिल विषय है और इस पर विस्तार से अध्ययन किए जाने की जरूरत है। "
व्यास ने कहा, "इस मुद्दे पर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले राष्ट्रव्यापी बहस की जरूरत है। सरकार भी इस मुद्दे पर किसी फैसले पर पहुंचने से पहले बहस चाहती है।"
उन्होंने कहा, "इस मुद्दे पर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले यह भी देखना होगा कि इसका समाज और परिवार पर क्या असर पड़ेगा।"
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को अपने 105 पृष्ठों के फैसले में कहा था कि अगर समान लिंग के दो वयस्क आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं तो यह अपराध नहीं है।
उच्च न्यायालय के इस फैसले के साथ ही ब्रिटिश राज में बनाए गए 149 साल पुराने कानून में बदलाव का रास्ता साफ हो गया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने पर दंड का प्रावधान है।
उच्च न्यायालय ने हालांकि बिना सहमति और नाबालिग के साथ अप्राकृतिक यौन संबंधों के मामले में धारा 377 के तहत सजा का प्रावधान बरकरार रखा है।
केंद्र सरकार इस मसले पर सावधानीपूर्वक नजर रख रही है। शुक्रवार को तीन कैबिनेट मंत्रियों गृह मंत्री पी. चिदंबरम, कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली और स्वास्थ्य मंत्री गुलामनबी आजाद ने बैठक कर इस मुद्दे पर चर्चा की।
मोइली ने बाद में संवाददाताओं से कहा कि तीनों मंत्री इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को एक रिपोर्ट सौंपेंगे और जो कि कानून में संशोधन के बाबद अंतिम फैसला लेंगे।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।