मंदी से भारत में 5 लाख बेरोजगार

By Staff
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नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा गुरुवार को संसद में पेश की गई वर्ष 2008-09 की आर्थिक समीक्षा कुल मिलाकर निराशाजनक है। समीक्षा के अनुसार अक्टूबर-दिसंबर 2008 के दौरान वैश्विक आर्थिक संकट के कारण देश में लगभग पांच लाख लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी। वहीं पिछले तीन वर्षो में कृषि ऋण बढ़कर दोगुना हो गया।

इसके अलावा देश में कुपोषण की गंभीर स्थिति, राजकोषीय घाटे में वृद्धि, विदेशी ऋण में वृद्धि और कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर में गिरावट जैसी बातें भी समीक्षा में शामिल हैं। 'भारत में रोजगार पर आर्थिक मंदी का प्रभाव' नामक रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि रत्न एवं आभूषण, परिवहन, ऑटोमोबाइल और कपड़ा उद्योग में रोजगार पर वित्तीय संकट का सबसे ज्यादा असर पड़ा। समीक्षा के अनुसार दिसंबर 2008 की तुलना में जनवरी 2009 में करीब एक लाख नौकरियां खत्म हुई।

वहीं वर्ष 2008-09 के दौरान सहकारी और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित सभी बैंकों ने पिछले तीन वर्षो की तुलना में किसानों को लक्ष्य से अधिक ऋण वितरित किए। जससे पता चलता है कि उनपर कर्ज का बोझ तीन गुना बढ़ गया है।

सरकार ने बताया कि वैश्विक मंदी के असर को कम करने के लिए रोजगार सृजन व सरकारी परियोजनाओं पर व्यय बढ़ाने के लिए खासा धन खर्च किया गया। जिसके कारण राजकोषीय घाटे में वृद्धि हुई और यह 2008-09 में सकल घरेलू उत्पाद का 5.2 फीसदी हो गया जबकि 2007-08 में यह 2.7 फीसदी था।

इस सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में देश में गरीबी की दर तो घटी है लेकिन कुपोषण की स्थिति अब भी गंभीर बनी हुई है। अब भी तीन साल से छोटे उम्र के बच्चों में कुपोषण की मात्रा 45.9 फीसदी है जो 1998-99 में 47 फीसदी के स्तर से कोई खास कमी नहीं है।

सर्वेक्षण की कुछ मुख्य बातों में ईंधन, खाद्यान्न और उर्वरक सब्सिडी में कटौती करना, बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश सीमा 49 प्रतिशत तक बढ़ाना और स्वास्थ्य, मौसम बीमा में 100 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत देने सहित प्रत्येक वर्ष विनिवेश से 25,000 करोड़ रुपये जुटाना शामिल है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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