सिब्बल ने खींचा शिक्षा सुधारों का खाका, पेश किया 100 दिनों का एजेंडा (राउंडअप)

By Staff
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सिब्बल ने अपने प्रथम 100 दिनों के एजेंडे के लिए लगभग 40 कानूनी, नीतिगत और प्रशासनिक पहलों की घोषणा की और 'शिक्षा के बोझ' को खत्म करने के लिए एक मजबूत पहल की। उन्होंने कहा कि 10वीं की बोर्ड परीक्षा आयोजित करने की कोई जरूरत नहीं है।

इसके साथ ही उन्होंने स्कूलों की रेटिंग निर्धारित करने के लिए एक स्वतंत्र अधिमान्यता प्राधिकरण के गठन और शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त कदाचरण पर लगाम कसने के लिए कानून बनाने पर विचार करने की बात कही है।

सिब्बल ने अपनी 100 दिनी कार्य योजना का खुलासा करते हुए कहा, "हम परीक्षा प्रणाली में सुधार लाएंगे और 10वीं की परीक्षा वैकल्पिक बनाई जाएगी। सभी स्कूल एक मूल्यांकन प्रणाली अपनाएंगे, क्योंकि अंक प्रणाली में बच्चे, माता-पिता विशेषकर मां पर ज्यादा दबाव रहता है।"

सिब्बल ने कहा कि वह देश भर में 12वीं की परीक्षा के लिए एक बोर्ड की व्यवस्था के लिए प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा, "फिलहाल देश में कई सारे बोर्ड विभिन्न परीक्षाएं आयोजित करते हैं और उनकी मूल्यांकन प्रणाली अलग-अलग होती है। ऐसे में जब एक ही व्यवस्था में सभी को प्रतिस्पर्धा करना है तो परीक्षा के लिए एक बोर्ड क्यों न हो?"

सिब्बल ने कहा, "मैंने देखा है कि खराब नंबर के कारण बच्चे आत्महत्या करते हैं। मैं नहीं सोचता कि देश के बच्चों को दबाव में अध्ययन करना चाहिए। शिक्षा बच्चों और माता-पिता के लिए बोझ नहीं होना चाहिए। ऐसे में हम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से मान्यता प्राप्त स्कूलों में नंबर की जगह ग्रेड प्रणाली लागू करेंगे।"

उन्होंने कहा कि बोर्ड परीक्षा का उद्देश्य छात्र को विश्वविद्यालय में नामांकन दिलाना है। ऐसे में एक एकल परीक्षा व्यवस्था इजाद करने की जरूरत है।

युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने को सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए उन्होंने कहा, "हम सर्वसम्मति से एकल बोर्ड परीक्षा की शुरुआत करेंगे ताकि बच्चे एक परीक्षा दें और तय करें कि उन्हें किस स्कूल या विश्वविद्यालय में पढ़ना है।"

सिब्बल ने कहा कि उनका लक्ष्य तीन स्तरीय "विस्तार, समायोजन और दक्षता है, जिसका मतलब पहुंच, भागीदारी और गुणवत्ता से है।"

सिब्बल ने कहा कि केंद्र सरकार स्कूलों की रेटिंग निर्धारित करने के लिए एक स्वतंत्र अधिमान्यता प्राधिकरण के गठन और शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त कदाचरण पर लगाम कसने के लिए कानून बनाने पर विचार कर रही है।

उन्होंने कहा, "वर्तमान समय में स्कूलों की प्रामाणिकता तय करने की कोई नीति नहीं है। यदि कोई बच्चा स्कूल जाता है तो उसे यह जानकारी नहीं होती कि वह स्कूल कैसा है। देश में कोई ऐसी एजेंसी भी नहीं है जो स्कूलों की रेटिंग तय करती हो।"

उन्होंने कहा, "हम इस सिलसिले में एक स्वतंत्र अधिमान्यता प्राधिकरण स्थापित किए जाने की संभावनाएं तलाशेंगे।" उन्होंने कहा कि इस दिशा में 100 दिनों के भीतर कदम उठाया जाएगा और इसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।

सिब्बल ने उम्मीद जताई कि अच्छे स्कूल खुद ब खुद मान्यता हासिल करने के लिए आएंगे। यदि कोई स्कूल ऐसा नहीं करता है तो हम जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर वे मान्यता हासिल करने के लिए क्यों आगे नहीं आ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त कदाचरण पर लगाम कसने के लिए 100 दिनों के भीतर एक कानून बनाया जाएगा। उन्होंने कहा, "देश में शिक्षा व्यवस्था में होने वाले कदाचरणों को रोकने और दोषियों को सजा दिलाने के लिए सरकार एक कानून बनाने जा रही है। इस कानून का उल्लंघन करने वालों को सजा दी जाएगी।"

उन्होंने कहा, "कई मौकों पर ऐसा होता है कि छात्र व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए आस्ट्रेलिया जाते हैं लेकिन जब वे वहां पहुंचते हैं तो सच्चाई कुछ और होती है। ऐसी चीजों में पारदर्शिता होनी चाहिए।"

सिब्बल ने कहा कि सरकार विदेशी शिक्षा प्रदाताओं को भी अनुमति देने की योजना बना रही है। इसे संचालित करने के लिए हम कानून भी लाएंगे।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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