मीडिया और जन आंदोलनों की समीक्षा का वक्त
सामाजिक कार्यकर्ता तथा पत्रकार संजय संगवई की स्मृति में आयोजित दो दिवसीय संवाद गोष्ठी के दूसरे दिन शुक्रवार को तमाम वक्ताओं ने मीडिया के बदलते रूप तथा जन आंदोलनों की भूमिका में हो रहे बदलाव पर बेबाकी से अपनी बात रखी।
वरिष्ठ पत्रकार पलाश सुरजन ने कहा कि वैश्वीकरण का असर चाहे मीडिया हो अथवा जन आंदोलन दोनों पर ही पड़ा है। साथ ही दोनों एक दूसरे से अपेक्षाएं भी करते हैं। मीडिया की अपनी कुछ मजबूरियां हैं जिनके चलते उसे एक दायरे में रहकर काम करना पड़ता है। मीडिया के लिए विश्वसनीयता सबसे पहले हैं। उन्होंने आगे कहा कि जन आंदोलन की कई खामियां सामने आती हैं। जिन्हें मीडिया छुपा भी जाता है। इसके बावजूद मीडिया पर दोषारोपण करने की कोशिश होती है जो किसी भी सूरत में ठीक नहीं है।
सामाजिक कार्यकर्ता राकेश दीवान का अभिमत था कि जन आंदोलन और मीडिया एक दूसरे के पूरक हैं। आज जरूरत इस बात की है कि दोनों की ही समीक्षा हो कि वे अपना काम किस तरह कर रहे हैं तथा उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन किस तरह से करना चाहिए। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय, सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल नारायण आवटे तथा सुनील भाई ने भी अपनी बात रखी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।