राजकोषीय घाटे की सीमा पर पुनर्विचार की जरूरत : प्रणब मुखर्जी

By Staff
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समाचार चैनल सीएनबीसी टीवी18 को दिए एक साक्षात्कार में मुखर्जी ने कहा कि अर्थव्यवस्था में तरलता वृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए ब्याज दरों में कटौती जैसे उपाय अपनाए गए हैं लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इस कदम से राजकोषीय घाटा बढ़ा है।

उन्होंने कहा,"हमने राजकोषीय घाटे की सीमा पार कर दी है और इस पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है।"

मुखर्जी के अनुसार वित्तीय उपायों का पूरा प्रभाव अभी तक इसलिए नहीं दिखाई दिया क्योंकि आदर्श चुनाव आचार संहिता के कारण सरकार मार्च से मई तक नई नीतियों को लागू नहीं कर सकी।

उन्होंने कहा, "बहरहाल चीजें अब दिखाई पड़नी शुरू हो गईं हैं और हम 2009 में सात प्रतिशत की विकास दर देखेंगे।"

पिछली सरकार में विदेश मंत्रालय संभालने वाले मुखर्जी वर्ष 1982 से 1984 के दौरान देश के वित्तमंत्री भी रह चुके हैं। वह जुलाई के पहले सप्ताह में बजट पेश करेंगे।

वित्तमंत्री ने बजट प्रस्तावों के बारे में कोई भी संकेत देने से इंकार करते हुए कहा कि वित्त मंत्री के रूप में वह आम आदमी से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता देंगे, जो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का केंद्रीय मुद्दा है।

इस संदर्भ में मुखर्जी ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (नरेगा) का उल्लेख करते हुए कहा कि इससे रोजगार पैदा हुआ और परिवारों की आमदनी बढ़ी है।

वित्तमंत्री ने कहा,"नरेगा ने कानून के जरिए रोजगार सुरक्षा सुनिश्चित की। हम खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करने की ओर देख रहे हैं।"

मुखर्जी ने जोर दिया कि वह आधारभूत ढांचे के विकास पर भी पर्याप्त ध्यान देंगे।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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