आरुषि हत्याकांड से मीडिया को सबक लेने की जरूरत
नई दिल्ली, 14 मई (आईएएनएस)। एक वर्ष पूर्व आरुषि तलवार की हत्या हुई थी। हत्या के बाद मीडिया ने इस मामले को लेकर आसमान सिर पर उठा लिया था। अखबार और न्यूज चैनल इस मामले से जुड़ी तरह-तरह की कहानियों से पटे रहते थे। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस मामले के कवरेज में सच और कल्पना के बीच जैसे दूरी ही मिट चली थी।
आलोचकों का कहना है कि आरुषि के अलावा परिवार के घरेलू नौकर हेमराज की भी एक दिन बाद नोएडा स्थित उसी घर में हत्या कर दी गई थी। लेकिन उसके या उसके परिवार के बारे में किसी ने भी चर्चा नहीं की। हत्या के ये दोनों मामले आज तक अनसुलझे पड़े हुए हैं और मीडिया की भी स्थिति ठीक वैसी ही है।
पत्रकार और स्तंभकार सेवंती नाइनन का कहना है कि इस मामले को कवर करने के पीछे मीडिया का दृष्टिकोण कहानी बेचने की भावना से प्रेरित था। यही कारण है कि किसी ने घरेलू नौकर की हत्या पर जरा भी ध्यान नहीं दिया।
नाइनन ने आईएएनएस से कहा है, "आरुषि मामले में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। लेकिन वे सारी बातें सच्चाई को जाने बगैर लिखी गई हैं। सच्चाई यह है कि मीडिया निठारी हत्याकांड की ही तरह इस मामले में भी कहानियां गढ़ने में मशगूल रहा। वे कहानियां बिक रही थीं।"
ज्ञात हो कि दंत चिकित्सक राजेश और नूपुर तलवार की बेटी आरुषि की पिछले वर्ष 16 मई को नोएडा स्थित उसके घर में रहस्यमय स्थिति में हत्या कर दी गई थी। परिवार के घरेलू नौकर हेमराज पर आरुषि की हत्या में शामिल होने का संदेह था। लेकिन एक दिन बाद उसी घर की छत पर हेमराज भी मृत पाया गया था।
अब इस दोहरे हत्याकांड के एक साल बीतने जा रहा है और मीडिया में एक बार फिर इस मामले को लेकर कहानियां आनी शुरू हो गई हैं। नाइनन ने कहा है कि मीडिया कवरेज में वर्ग भेद की भावना स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आई है।
नाइनन कहती हैं, "इस मामले में दो हत्याएं हुई थीं और दोनों हत्याओं की गुत्थी अनसुलझी रह गईं। आज भी हर कोई आरुषि के बारे में बातें कर रहा है। घरेलू नौकर हेमराज के बारे में कोई भी नहीं सोच रहा।"
नाइनन कहती हैं, "आरुषि के पिता राजेश तलवार और उनके परिवार के प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है। उन्हें परेशान किया गया, लेकिन बाद में उन्होंने मीडिया का समर्थन भी हासिल कर लिया। लेकिन हेमराज मीडिया के महत्व का नहीं बन पाया।"
एक मीडिया एडवोकेसी ग्रुप की प्रमुख अखिला शिवदास का कहना है कि बहुत सारे लोगों को कहानियों के मूल से कोई मतलब नहीं होता। लगभग सभी टीवी चैनल और दैनिक अखबार, लोगों की प्यास बुझाने के लिए सनसनी भरी कहानियां गढ़ते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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