गुजरात दंगों की रोजाना सुनवाई के लिए त्वरित अदालतें बनाए मोदी सरकार : सर्वोच्च न्यायालय (राउंडअप)

By Staff
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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) तथा अन्य की ओर से इस संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अरिजित पसायत और न्यामूर्ति अशोक कुमार गांगुली की पीठ ने वर्ष 2002 में बहुचर्चित गोधरा कांड के बाद राज्य में भड़के दंगों से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों में शुक्रवार को यह व्यवस्था दी।

पीठ ने इन मामलों की रोजाना के तौर पर सुनवाई के लिए अहमदाबाद के नरोदा पाटिया, नरोदा गाम और गुलबर्ग सोसायटी तथा मेहसाणा, साबरकांठा, आणंद और साबरमती जेल में छह विशेष त्वरित अदालतों के गठन का आदेश जारी किया।

न्यायालय ने सरकार से वरिष्ठ और अनुभवी वकीलों को सरकारी वकील नियुक्त करने का भी आदेश दिया। यह नियुक्तियां केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व निदेशक आर. के. राघवन की अध्यक्षता में गठित एक विशेष जांच दल की सलाह से की जाएंगी।

सर्वोच्च न्यायालय ने इन मामलों की सुनवाई के लिए वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति करने को भी कहा है। अदालत ने गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया है कि वह खुद वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति करें।

अदालत ने इसके अलावा राज्य सरकार से इन मामलों से जुड़े गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा है। इन गवाहों को किस स्तर की सुरक्षा दी जाएगी यह विशेष जांच पैनल के प्रमुख राघवन तय करेंगे।

अहमदाबाद में गुजरात दंगों के पीड़ितों व उनके वकीलों ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का स्वागत किया है।

शहर के बाहरी क्षेत्र में बसे नरोदा पाटिया के लोगों को जैसे ही अदालत के फैसले की जानकारी मिली, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। नरोदा पाटिया में एक मार्च, 2002 को कम से कम 95 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था।

दंगों के दौरान मौत के मुंह से बच निकले 50 वर्षीय अब्दुल गफ्फार गनी ने कहा, "दंगा पीड़ितों के लिए यह बहुत ही राहत वाली खबर है। कई ऐसे दंगा पीड़ित हैं जिन्हें पिछले सात सालों में अब तक न्याय नहीं मिल पाया है।"

सिलाई का काम करने वाले 35 वर्षीय सलीम रज्जाक ने कहा, "हमें पूरी उम्मीद है कि इन मामलों की तेजी से और निष्पक्ष सुनवाई होगी।"

इस बीच दंगों की सुनवाई से जुड़े वकीलों ने भी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। सरकारी वकील जे. एम. पांचाल ने कहा, "सर्वोच्च न्यायालय का फैसला स्वागत योग्य है।"

पीड़ितों के वकील मुकुल सिन्हा ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया दिया है जो स्वागत योग्य है।

उधर, अदालत के फैसले को लेकर कांग्रेस और भाजपा में एक बार फिर इस मुद्दे पर तलवारें खिंच गई हैं। कांग्रेस ने इसे राज्य की भाजपा सरकार के लिए परीक्षा की घड़ा बताया है तो भाजपा ने इसका स्वागत किया है।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर यह विश्वास जताते हुए कि दंगा पीड़ितों को न्याय मिल सकेगा, केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा, "अदालत का फैसला गुजरात सरकार की परीक्षा है।"

उन्होंने कहा, "गुजरात और देश की जनता इस फैसले के लिए अदालत को साधुवाद देती है। "

इससे पहले, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम. वीरप्पा मोइली ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि इस आदेश के बाद सबकी निगाहें गुजरात उच्च न्यायालय पर रहेगी कि निष्पक्ष सुनवाई होती है कि नहीं।

मोइली ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, "सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा लेकिन अब यह गुजरात उच्च न्यायालय पर निर्भर करता है कि कैसे निष्पक्ष सुनवाई हो। उच्च न्यायालय को यह सुनिश्चित भी करना होगा कि विशेष जांच दल दंगों से जुड़े मामलों की स्वतंत्रापूर्वक जांच कर सके।"

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, "मोदी ने दंगों के लिए माफी तक नहीं मांगी, यह उसी का नतीजा है। उन्हें इसका कोई खेद भी नहीं हैं।"

भाजपा ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है। पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने जानबूझकर इस मामले को उठाया है।

उन्होंने कहा, "हमें खुशी है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में सही कदम उठाया है। यह नहीं भूलना चाहिए कि गुजरात पुलिस ने जांच के दौरान कई लोगों को आरोपी बनाया है। लोग गुजरात दंगों की बात तो उठाते हैं लेकिन वे क्यों गोधरा कांड को भूल जाते हैं।"

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने गवाहों की सुरक्षा के प्रति चिंता जताते हुए कहा, "जब तक गवाहों की सुरक्षा का उचित प्रबंध नहीं हो जाता तब तक गुजरात में न्याय नहीं मिल सकता।"

उल्लेखनीय है कि गुजरात दंगों में 1000 से अधिक लोग मारे गए थे। मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्य और कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी इस मामले में आरोपी हैं।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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