निर्माण के 150 वर्ष बाद भी राजनीतिक मुद्दा है स्वेज नहर
काहिरा, 24 अप्रैल(आईएएनएस)। जब फ्रांसीसी राजनयिक फर्डीनेंड डे लेसेप्स स्वेज नहर की खुदाई के सिलसिले में 25 अप्रैल, 1859 को मिस्र के पोर्ट सैद शहर के दौरे पर पहुंचे थे तो ब्रिटेन अचानक चौकन्ना हो गया था। उसे यह डर सताने लगा कि इस नहर के बूते फ्रांस उसके हितों को नुकसान पहुंचा सकता है।
समाचार एजेंसी डीपीए के मुताबिक ब्रिटेन को यह डर था कि भूमध्य सागर और लाल सागर को जोड़ने वाली यह कृत्रिम नहर फ्रांस को राजनीतिक और आर्थिक वर्चस्व कायम करने में मदद देगी। अपने निर्माण के 150 वर्ष बाद भी स्वेज नहर राजनीति मुद्दा बनी हुई है। इन दिनों नहर के पास सुरक्षा चौकसी अचानक बढ़ गई है। हाल ही में यहां लेबनानी शिया पार्टी हिजबुल्ला के समर्थकों की गतिविधयां तेज हो गई हैं। पोर्ट सैद और स्वेज के बीच होने वाले व्यापार में उनकी दिलचस्पी अचानक बढ़ गई है।
मिस्र के राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने फिलीस्तीनी संगठन हमास को स्वेज नहर के जरिए हथियारों की अवैध आपूर्ति बंद किए जाने पर जोर दिया है। अपने निर्माण काल से ही यह नहर विवादों के घेरे में है। 1875 में यह उस वक्त बड़े विवाद में फंस गई जब एक ब्रिटिश राजदूत ने इस नहर में एक दिवालिया उद्योगपति खेदिव इस्माइल पाशा का शेयर खरीद लिया।
वहीं, नहर की खुदाई करने वाले मजदूरों के घोर शोषण को लेकर लंबा विवाद रहा। नहर के निर्माण के दौरान लाखों मजदूर हैजे की चपेट में आ गए और कुल 120,000 मजदूरों की मौत हो गई। नहर के लिए वसूले जाने वाले पारगमन शुल्क को लेकर शुरू से ही विवाद रहा है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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