क्या इस बार भी नेताओं को गौर से सुन रहे हैं कश्मीरी ?

By Staff
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श्रीनगर,16 अप्रैल(आईएएनएस)। ऐसे में जब अलगाववादियों के चुनाव बहिष्कार के आह्वान के बीच कश्मीर घाटी की तीन लोकसभा सीटों के लिए चुनाव प्रचार जोर पकड़ रहा है, यह सवाल शिद्दत से पूछा जा रहा है कि क्या हालिया विधानसभा चुनाव की तरह ही इस चुनाव में भी मतदाताओं में जोश देखा जाएगा?

कश्मीर घाटी की तीन संसदीय सीटों के लिए 30 अप्रैल, सात मई और 13 मई को वोट डाले जाएंगे। यूं तो लोगों के लिए रोजगार, सड़क, पानी, बिजली, भ्रष्टाचार प्रमुख मसले हैं, लेकिन सत्तारूढ़ नेशनल कांफ्रेंस और विपक्षी पीडीपी जैसी पार्टियों की दिलचस्पी भावनात्मक मसलों को ही उछालने में है।

दोनों दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। नेशनल कांफ्रेंस पार्टी पीडीपी पर जनता का भावनात्मक शोषण करने का आरोप लगा रही है, जबकि पीडीपी राज्य सरकार पर जनता की सुरक्षा की परवाह नहीं करने का आरोप लगा रही है।

अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने चुनाव बहिष्कार की अपील कर प्रशासन की चिंता बढ़ा दी, वहीं एक कश्मीरी नेता सज्जाद लोन ने चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।

एक विश्लेषक कहते हैं, "कश्मीर के संदर्भ में महत्वपूर्ण यह है कि जनता किस हद तक चुनाव में भाग लेती है, न कि यह कि कौन जीतता है और कौन हारता है।" विधानसभा और लोकसभा चुनाव के अलग-अलग मिजाज को देखते हुए यह सवाल वाकई अहम है कि क्या इस बार भी घाटी की जनता नेताओं को गौर से सुन रही है और बढ़-चढ़कर मतदान में भाग लेगी या फिर मतदान केंद्रों पर गहमागहमी की जगह उदासी का आलम रहेगा।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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