सोनिया-मनमोहन का फिर आडवाणी पर पलटवार, बैकफुट पर भाजपा (राउंडअप)

By Staff
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सोनिया गांधी ने आडवाणी पर बुधवार को भी निशाना साधा। बेंगलुरू से लगभग 670 किलोमीटर दूर बीदर में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "देश की जनता जानती है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का दास कौन है।"

उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में उल्टी-सीधी टिप्पणी करने वाले आडवाणीजी से मैं पूछना चाहती हूं कि क्या वे बगैर आरएसएस की सहमति के कोई निर्णय लेते हैं।"

सोनिया ने कहा कि जब आडवाणीजी ने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष कहा था तो आरएसएस के दबाव में उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा था। उन्होंने कहा, "मैं पूछना चाहती हूं कि आडवाणीजी इतने ही मजबूत नेता थे तो उस समय उन्होंने क्यों नहीं कुछ किया।"

उधर, मनमोहन सिंह ने कहा कि आडवाणी पर पिछले दिनों उन्होंने जो आक्रामक पलटवार किया था वह आवेग में नहीं बल्कि सामान्य अवस्था में दिया गया बयान था, क्योंकि उन्होंने हद कर दी थी।

एडिटर्स गिल्ड के सदस्यों के साथ चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा, "कोई भी गंभीर राजनीतिक विश्लेषक यही कहेगा कि आडवाणी के बारे में जो कुछ भी मैंने कहा है वह सच है। बाकी तो देश की जनता तय करेगी।"

दरअसल, प्रधानमंत्री ने यह जवाब उस वक्त दिया जब उनसे पूछा गया कि हाल ही में उन्होंने आडवाणी पर जो शब्दबाण छोड़े थे वह आवेशवश थे या फिर वे सामान्य प्रक्रिया के तहत थे। साथ ही इससे क्या दोनों नेताओं के रिश्तों में कड़वाहट भी आई है।

मनमोहन सिंह को बार-बार कमजोर प्रधानमंत्री कहना बुधवार को भाजपा को इतना महंगा पड़ गया कि भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह अचानक राजनीतिक शिष्टाचार की बात करने लगे। उन्हें प्रधानमंत्री से कीचड़ उछालू राजनीति रोकने की पहल करने का आग्रह पड़ गया।

राजनाथ ने बेंगलुरू में प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि मौजूदा वक्त में एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की जो राजनीति चल रही है वह उसे बंद करने की पहल करें।

राजनाथ ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा, "प्रधानमंत्री को कभी भी किसी तरह के कलंकित करने वाले अभियान में व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं होना चाहिए। मैं आशा करता हूं कि प्रधानमंत्री स्वयं चुनाव अभियान के नाम पर की जा रही इस कीचड़ उछालने वाली राजनीति को बंद करने की पहल करेंगे।"

उन्होंने कहा कि एक स्वस्थ लोकतंत्र में विपक्षी नेताओं पर व्यक्तिगत प्रहारों को कभी भी ठीक नहीं माना जा सकता। जिम्मेदार प्रतिपक्षी दलों का यह नैतिक दायित्व है कि वे सरकार की रचनात्मक आलोचनाओं के अधिकार का प्रयोग करे। यदि प्रतिपक्षी दल प्रधानमंत्री की उनके कार्यो के लिए आलोचना करते हैं तब प्रधानमंत्री को स्वयं को बचाने की बजाय उनकी पार्टी को उनका बचाव करने के लिए आगे आना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने इससे पहले नई दिल्ली में एक और महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने चुनाव बाद वामदलों के समर्थन से सरकार बनाने का विकल्प खुला रखा है।

एडीटर्स गिल्ड के सदस्यों के साथ ही चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने वामदलों के साथ चुनाव बाद गठजोड़ की संभावना से इंकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) अंतत: क्या करेंगे यह उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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