सत्यमः कैसे हुआ इतना बड़ा घोटाला?
मामले की जांच कर रही शीर्ष एकाउंटिंग निकाय आईसीएआई की टीम द्वारा पूछताछ करने पर घोटाले के तरीकों का खुलासा करते हुए कंपनी के पूर्व सीएफओ वाडलामणि श्रीनिवास ने बताया कि कंपनी की बिक्री को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया और दावे की पुष्टि के लिए बैंक स्टेटमेंट्स के साथ छेड़छाड़ की गई।
पांच-छह साल पहले शुरु हुआ मामला
इंडियन इंस्टीटयूट आफ चार्टर्ड एकाउंटेंट (आईसीएआई) के अध्यक्ष उत्तम प्रकाश अग्रवाल के अनुसार कंपनी के पूर्व सीएफओ वाडलामणि ने बताया कि यह पूरा मामला पांच-छह साल पहले 10 करोड़ रुपए के समायोजन के साथ शुरू हुआ और तिमाही दर तिमाही चलता रहा।
श्रीनिवास ने कहा कि कंपनी के पास कुल 600 ग्राहक थे, जिनमें से कुछ की बिक्री रसीद को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया। उसके बाद कंपनी ने दिन के भीतर प्राप्त रुपए को फर्जी बैंक स्टेटमेंट्स में दिखाया।
धन
को
अचल
संपत्ति
के
रूप
में
दिखाया
श्रीनिवास
ने
बताया
कि
कई
सालों
तक
रुपए
को
चालू
खाते
में
ही
रखा
गया
लेकिन
बाद
में
वर्ष
2006
में
दो
विशेषज्ञों
ने
जब
यह
सवाल
किया
कि
सत्यम
के
पास
इतनी
मात्रा
में
नकदी
है
तो
वह
कोष
जुटाने
की
बात
क्यों
कर
रहा
है?
तब
सत्यम
के
संस्थापक
और
पूर्व
चेयरमैन
रामलिंगा
राजू
ने
एफडीआर
रसीद
के
जरिये
धन
को
बैंक
खातों
की
बजाय
अचल
संपत्ति
के
रूप
में
दिखाया।
अग्रवाल के अनुसार श्रीनिवास ने कहा कि सभी तथ्य और बाह्य स्टेटमेंट्स ऑडिटर्स को सत्यम प्रबंधन ने ही उपलब्ध कराए थे।
आईसीएआई के अध्यक्ष के अनुसार श्रीनिवास ने आईसीएआई टीम से यह भी कहा कि घोटाले के मुख्य साजिशकर्ता बी. रामलिंगा राजू, उसके छोटे भाई और कंपनी के पूर्व प्रबंध निदेशक बी. राम राजू हैं।
इस घोटाले की जांच कर रही आईसीएआई की समिति के सदस्य अग्रवाल और शांतिलाल डागा ने श्रीनिवास और प्राइस वाटरहाउस के दो बर्खास्त ऑडिटरों एस. गोपालकृष्णन और तालुरी श्रीनिवास से रविवार को हैदराबाद स्थित चंचलगुडा केंद्रीय जेल में पूछताछ की थी।