बौद्ध भिक्षुणियों की धार्मिक सत्ता स्वीकार करने लगे हैं तिब्बती
काठमांडू, 13 अप्रैल(आईएएनएस)। करीब 800 वर्ष पुराने तिब्बती द्रुपका पंथ को महिलाओं के भिक्षुणी बनने पर कोई एतराज नहीं है और यह पंथ इसे महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक अहम कदम मान रहा है। इस पंथ ने अपने संघ में पहली भिक्षुणी को प्रवेश देकर महिलाओं को संघ में प्रवेश की परंपरा शुरू की है।
12वें ग्यालवांग द्रुकपा, जिनका जन्म हिमाचल प्रदेश में हुआ, ने नेपाल में आईएएनएस से बातचीत करते हुए कहा, "तिब्बती बौद्ध धर्म में ऐसी बिकशुनी (भिक्षुणी) बनने की परंपरा नहीं रही है जो बेहद कठोर नियमों का पालन करे। बौद्ध धर्म आधुनिकतावादी धर्म है, इसलिए हमें बदलना पड़ेगा। महात्मा बुद्ध अपने सभी शिष्यों के साथ समान व्यवहार करते थे। हम उनकी विरासत को ही आगे बढ़ा रहे हैं।"
यह पंथ भारत और नेपाल में सक्रिय है। मार्च 2006 में 12वें ग्यालवांग द्रुकपा ने लंदन में जन्मी बौद्ध भिक्षुणी तेनजिन पाल्मो को उनकी आध्यात्मिक उपलब्धियों के लिए 'जेतसुनमा' यानी परमपूज्य के तौर पर मान्यता दी। वह बौद्ध धर्म का अध्ययन करने के लिए 1964 में भारत आईं। उन्हें क्याबजे खामत्रुल रिनपोछे ने दीक्षा दी और वह प्रथम यूरोपीय भिक्षुणियों की जमात में शामिल हो गईं। अब वह हिमाचल प्रदेश में डोंग्यू गाटसाल लिंग भिक्षुणी संघ की प्रमुख हैं।
ग्यालवांग कहते हैं, "मुझे पाल्मो पर गर्व है। यह संघ में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित करने की दिशा में अहम कदम है।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।