बगैर 'तेलंगाना' के बैकफुट पर है टीआरएस
हैदराबाद, 12 अप्रैल (आईएएनएस)। आंध्र प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में महज चार दिन बचे हैं लेकिन अलग तेलंगाना राज्य का मुद्दा इस पिछड़े इलाके के अधिकांश क्षेत्रों में नदारद है। इस आंदोलन की प्रणेता तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) इन चुनावों में बैकफुट पर है।
राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) द्वारा भी अलग तेलंगाना राज्य की मांग का समर्थन करने के बावजूद यह मुद्दा अब ठंडे बस्ते में चला गया है। इसके पीछे टीआरएस नेताओं की खत्म होती विश्वसनीयता तो सबसे बड़ा कारण है ही, कुछ अन्य कारक भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मद्देनजर टीआरएस ने इस बार तेदेपा से समझौता किया है। वह इस दफा विधानसभा की 45 और लोकसभा की 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
जानकारों की मानें तो इस चुनाव में टीआरएस का प्रदर्शन वैसा नहीं रहेगा जैसा 2004 के चुनाव में रहा था। टीआरएस ने पिछला चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था।
पिछले चुनाव में टीआरएस ने 26 विधानसभा और पांच लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी लेकिन इन चुनावों में उसकी साख खतरे में हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का हिस्सा होने के बावजूद अलग तेलंगाना राज्य के मुद्दे पर टीआरएस कुछ नहीं कर पाई।
जहीराबाद विधानसभा क्षेत्र के किसान ए. अंजन्ना कहते हैं, "लोगों के मन में अलग तेलंगाना राज्य को लेकर अब कोई उत्साह ही नहीं रहा।"
अलग तेलंगाना राज्य का मुद्दा यहां से कैसे गायब है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि टीआरएस के अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव अपनी चुनावी सभाओं में अलग तेलंगाना राज्य बनाने को लेकर न सिर्फ लंबे चौड़े वादों से परहेज कर रहे हैं बल्कि तेदेपा के वादों का जिक्र कर रहे हैं।
राव इस दफा महबूबनगर संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके गृह जिले मेडक तक में टीआरएस अपना जनसमर्थन खो चुकी है। मेडक से फिल्म अभिनेत्री विजयाशांति भले ही अपने ग्लैमर के दम पर चुनाव जीत जाएं लेकिन वहां अलग तेलंगाना राज्य कोई मुद्दा नहीं है।
उल्लेखनीय है कि आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ-साथ राज्य विधानसभा के भी चुनाव हो रहे हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
*