सर्वोच्च न्यायालय ने जाति आधारित जनगणना की याचिका खारिज की
प्रधान न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन और पी.सथाशिवम ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि इससे जातीय संघर्ष बढ़ेगा।
तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टी पीएमके ने इस याचिका को दाखिल करके कई जातियों की जनसंख्या की जानकारी चाही थी। पीएमके का तर्क था कि कई विकास और कल्याण योजनाओं के संचालन के लिए जातिवार गणना आवश्यक है।
पीएमके ने कहा कि वर्ष 1953 में स्थापित पहले अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग से लेकर बाद में बने सभी आयोगों ने जाति आधारित जनगणना पर जोर दिया है।
याचिका में कहा गया था कि भारत न केवल राज्यों का संघ वरन कई जातियों, जनजातियों और समुदायों का संगम है। यहां तक कि संविधान में भी विभिन्न जातियों और समुदायों को मान्यता दी गई है और कई जाति तथा समुदाय आधारित कानूनों, संस्कारों और परंपराओं को स्वीकार किया गया है।
याचिका में तर्क दिया गया कि भारत में प्राचीन काल से जाति आधारित जनगणना होती रही है और 260 से 232 ईसा पूर्व के कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी इसका उल्लेख है।
याचिका के अनुसार अकबर के मंत्री अबुल फजल ने भी 16 वीं-17वीं सदी में जाति आधारित जनगणना का उल्लेख किया है और ब्रिटिश शासन काल में भी ऐसी जनगणना होती रही है लेकिन स्वतंत्रता के बाद से ऐसा नहीं किया गया।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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