'प्रत्याशियों से सभी जानकारी लेने पर जोर दे निर्वाचन आयोग'
प्रधान न्यायाधीश के.जी.बालाकृष्णन और न्यायमूर्ति पी.सथशिवम की खंडपीठ ने एक याचिका की सुनवाई के बाद निर्वाचन आयोग को यह निर्देश जारी किया। याचिका में इस तथ्य को सामने लाया गया है कि कानूनी विसंगतियों का लाभ उठाकर कुछ उम्मीदवार नामांकन पत्र के कुछ कालमों को खाली छोड़ दे रहे हैं।
एक नागरिक अधिकार समूह भारत पुनरुत्थान ने पिछले वर्ष इस जनहित याचिका को दायर किया था। संगठन ने पाया कि प्रत्याशियों में महत्वपूर्ण जानकारी के कालमों को रिक्त छोड़ने का काफी चलन है।
संगठन की ओर से न्यायालय में उपस्थित हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने बताया कि उनके मुवक्किल ने पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान 7,000 नामांकन पत्रों की जांच में इस तथ्य का पता लगाया।
उन्होंने कहा कि प्रत्याशी शपथ पत्र के माध्यम से झूठी जानकारी देने के आरोप से बचने की अपेक्षा कुछ जानकारियों के कालमों को छोड़ना पसंद करते हैं। भूषण ने कहा कि इससे निर्वाचन आयोग को उनका नामांकन खारिज करना या उनके खिलाफ कोई कदम उठाना कठिन होता है।
इस याचिका के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया था। आयोग ने अपने उत्तर में कहा कि इस तरीके से उम्मीदवार के बारे में जानकारी प्राप्त करने के मतदाता के अधिकार का हनन करने में प्रत्याशी सफल हो जाते हैं।
गुरुवार को आयोग की ओर से न्यायालय में उपस्थित हुईं वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने स्वीकार किया कि इस चाल से उम्मीदवार निर्वाचन आयोग को कोई कदम उठाने में अक्षम बना देते हैं।
अरोड़ा ने न्यायालय को बताया कि निर्वाचन आयोग अब उम्मीदवारों से इन खानों को बिना भरे छोड़ने के स्थान पर इनमें कम से कम 'लागू नहीं' या 'शून्य' भरने पर जोर डाल रहा है। इस प्रकार आयोग उम्मीदवारों पर झूठा शपथ पत्र देने के मामले में कार्रवाई करने में सक्षम हो जाएगा।
मतदाताओं ने दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में 2000 के दशक के आरंभ में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उम्मीदवारों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अधिकार हासिल किया था।
भूषण ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने मतदाताओं के अधिकार के पक्ष में निर्णय दिया। सरकार ने इस निर्णय के अनुसार चुनाव नियमों में बदलाव किया लेकिन मतदाताओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन आयोग को अभी समुचित नियम बनाने हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।