अफगानिस्तान में क्यों नहीं जीत रहा है नाटो?

By Staff
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फरहद पेकर

काबुल, 1 अप्रैल(आईएएनएस)। बसंत ऋतु की एक खामोश रात में हुए उस त्रासद वाकये को याद कर तूर जान सिहर उठते हैं, जब उनकी आंखों ने अपने घर में मौत का मंजर देखा था। अचानक एक बमबारी ने न सिर्फ उनके कुनबे को तबाह कर दिया था, बल्कि उन्हें बेघर भी बना दिया। वह उन हजारों बदनसीबों में शुमार हैं, जिन्हें नाटो के हमलों ने शरणार्थी बना दिया है। नाटो की यह हरकत अफगानिस्तान में उसकी विफलता का सबब है।

समाचार एजेंसी डीपीए के अनुसार इस हमले में तून की मां, उनकी छोटी बेटी, तीन भतीजों ने दम तोड़ दिया। नाटो के युद्घक विमान का निशाना अगर थोड़ा और सटीक होता तो खुद तूर जान मीडिया से बात करने के लिए जिंदा नहीं होते।

वह कहते हैं,"मैं भी मारा जाता, पर मेरे घर के एक हिस्से पर ही बम गिरा था। इस इलाके में इस वाकये से आठ-नौ घंटे पहले तालिबान और विदेशी सैनिकों के बीच भिडं़त हुई थी, पर जिस वक्त बम गिराया गया, वहां कोई तालिबानी नहीं था।"

आज वह अपने शेष संबंधियों के साथ काबुल के बाहर शरणार्थी शिविर में रहते हैं। वह कहते हैं, "लोगों में नाटो के खिलाफ गहरा असंतोष है। इससे तो अच्छा तालिबान का शासन था। कम से कम हम अपने घरों में तो सुरक्षित थे।"

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल देश में 2000 से अधिक नागरिक मारे गए और इनमें से 40 फीसदी मौतों के लिए नाटो जिम्मेवार है। लोगों में प्रतिशोध की भावना है और वे तालिबान से हमदर्दी रखने लगे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे लोग जिनके संबंधी मारे गए हैं, वे बड़ी संख्या में तालिबान में शामिल हो रहे हैं। स्थानीय लोगों में नाटो की विश्वसनीयता खत्म हो गई है। एक विश्लेषक हारून मीर डीपीए से बातचीत करते हुए कहते हैं, "नाटो को रणनीति बदलनी होगी, वरना यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा। लोग उसके खिलाफ हैं।"

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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