भारत आने वाला हर तीसरा सैलानी पहुंचता है राजस्थान
30 मार्च 1949 को वृहत्त राजस्थान का निर्माण हुआ और इसी दिन से 30 मार्च को प्रतिवर्ष राजस्थान का स्थापना दिवस आयोजित किया जाता है। विश्व में पर्यटन के लिए विख्यात राजस्थान विश्व परिप्रेक्ष्य में भी अनेक विशेषताओं का धनी है। यही वजह है कि विश्व स्तर पर राजस्थान की विशेषताओं के जादू के सम्मोहन से बंधा भारत आने वाला हर तीसरा सैलानी राजस्थान पहुंचता है।
विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में कालीबंगा, पीलीबंगा आदि स्थानों पर लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता के प्रामाणिक अवशेष यहां मिले हैं। उस समय की प्रमुख नदी सरस्वती वैदिक युग में राजस्थान प्रदेश में बहती थी जो अब लुप्त हो गई है तथा इसका कुछ भाग घग्घर नदी के नाम से हनुमानगढ तथा गंगानगर जिलों में प्रवाहित होता है।
प्राचीनकाल में प्रसिद्ध विश्व यात्री चीन का व्हेनसांग सातवीं सदी में अपनी भारत यात्रा के दौरान राजस्थान आया। विश्व प्रसिद्घ तराईन के दोनों युद्घ 1191 ईस्वी. एवं 1192 ईस्वी में अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान एवं मोहम्मद गोरी के बीच लड़े गए। विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति जो राजसमंद झील के किनारे स्थित राजसिंह प्रशस्ति संगमरमर के 25 शिलालेखों पर उत्कीर्ण है। यह मेवाड़ के इतिहास का एक प्रमुख स्त्रोत है।
पृथ्वीराज चौहान, राणा कुम्भा, महाराणा प्रताप, दुर्गादास तथा सवाईसिंह आदि यहां की रणभूमि की शूरवीर संतानें हैं। भामाशाह की निस्वार्थ सेवा, रानी पद्मिनी के जौहर और पन्नाधाय का त्याग जग जाहिर है। साहित्य सृजन की परम्परा को आगे बढाने में महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण, कृष्ण भक्त मीरा बाई और संत दादू ने अविस्मरणीय योगदान दिया।
रानी पद्मिनी और कर्मावती के जौहर विश्व इतिहास के एकमात्र उदाहरण हैं। जयपुर के जयगढ़ स्थित किले पर पहियों पर रखी जयबाण तोप विश्व की सबसे बड़ी तोप के रूप में प्रसिद्ध है। पुष्कर राज स्थित ब्रह्माजी का मंदिर, अजमेर स्थित विश्वविख्यात सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह तथा पाली जिले के रणकपुर में स्थित चौमुखा आदिनाथ जैन मंदिर धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है।
राजस्थान में संगमरमर और कोटा स्टोन पत्थर, जयपुर में हीरे जवाहरात और बहुमूल्य पत्थर, सांगानेर और बाड़मेर के अजरक प्रिंट, राजस्थान की जूतियां, मोजडियां, चमड़े के बैग, बीकानेर के रसगुल्ले व नमकीन भुजिया, कोटा की मसूरिया साड़ी, राजस्थान की चुनड़ी व लहरिया तथा अजमेर जिले के किशनगढ की बणी-ठणी का चित्र जो भारत के मोनालिसा के नाम से जाना जाता है, विश्व स्तर पर विख्यात हैं।
पर्यटन की दृष्टि से गुलाबी नगर के रूप में विख्यात जयपुर का हवामहल, सवाईमाधोपुर में रणथंभौर का बाघ अभयारण्य, विशालतम पहाड़ियों पर बना चित्तौड़गढ का अभेद्य दुर्ग, जोधपुर का छीतर महल, झीलों की नगरी उदयपुर और यहां का लेक पैलेस, भरतपुर का केवलादेव पक्षी अभयारण्य, पुष्कर का पशु मेला, शेखावाटी की हवेलियों के भित्ती चित्र, जैसलमेर की हवेलियां और रेत के धौरे तथा शाही रेलगाड़ी पैलेस ऑन व्हील्स अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आकर्षण के प्रमुख केन्द्र हैं।
राजस्थान निर्माण की पृष्ठभूमि को देखें तो ज्ञात होता है कि भारत की आजादी मिलने पर राजस्थान राजपूताने के नाम से जाना जाता था जिसमें 19 रियासतें और 3 ठिकानें (निमराना, लावा एवं कुशलगढ) तथा अजमेर-मेरवाड़ा का केन्द्र शासित प्रदेश शामिल था। आजादी के बाद इन सभी के विलीनीकरण होने से राजपूताने का नाम राजस्थान राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।
सर्वप्रथम 17 मार्च 1948 को मत्स्य संघ की स्थापना हुई जिसमें अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली राज्यों का विलीनीकरण किया गया। मत्स्य संघ प्रदेश की राजधानी अलवर को बनाया गया तथा धौलपुर नरेश राजप्रमुख एवं अलवर नरेश उप राजप्रमुख बनाए गए।
विलीनीकरण के दूसरे चरण में 25 मार्च 1948 को 9 रियासतों को मिलाकर राजस्थान संघ का निर्माण किया गया। इसमें कोटा, बूंदी, झालावाड, बांसवाडा, डूंगरपुर, प्रतापगढ, किशनगढ, टोंक एवं शाहपुरा रिसायतों को शामिल किया गया। राजस्थान संघ की राजधानी कोटा को बनाकर कोटा के महाराव को राजप्रमुख एवं डूंगरपुर के महारावल को उप राजप्रमुख बनाया गया। इसके तीन दिन बाद ही उदयपुर के महाराणा ने भी भारत सरकार के रियासती मंत्रालय को पत्र भिजवाकर इस नए राजस्थान संघ में शामिल होने की इच्छा प्रकट की।
विलीनीकरण के तीसरे चरण के रूप में 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर रियासत का राजस्थान संघ में विलय कर नया नाम संयुक्त राजस्थान का निर्माण किया गया। इसका उद्घाटन भी उसी दिन उदयपुर में भारत के प्रधानमंत्री पंड़ित जवाहर लाल नेहरू ने किया। उदयपुर को संयुक्त राज्य संघ की राजधानी बनाकर वहां के महाराणा भूपाल सिंह को राजप्रमुख, कोटा महाराव भीमसिंह को उप राजप्रमुख तथा माणिक्य लाल वर्मा को प्रधानमंत्री बनाया गया।
विलीनीकरण के प्रमुख चौथे चरण में 30 मार्च 1949 को जयपुर में आयोजित भव्य समारोह में वृहत्त राजस्थान का उद्घाटन किया गया और इसका निर्माण संयुक्त राजस्थान में जयपुर, जोधपुर, बीकानेर व जैसलमेर रियासतों का विलीनीकरण भी कर लिया गया। इस समारोह में सरदार पटेल ने जयपुर महाराजा मानसिंह को राजप्रमुख, कोटा महाराव भीमसिंह को उप राजप्रमुख तथा हीरालाल शास्त्री को नये राज्य के प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई।
वृहत्त राजस्थान का निर्माण होने पर 15 मई 1949 को मत्स्य संघ भी राजस्थान में मिला लिया गया। सिरोही का विलय 26 जनवरी 1950 को किया गया तथा 1 नवम्बर 1956 को तत्कालीन अजमेर-मेरवाडा राज्य को भी शामिल कर लिया गया। इसी के साथ मध्य भारत के मंसोर जिले की मानपुरा तहसील का सुनेलटप्पा ग्राम राजस्थान में शामिल किया गया तथा कोटा जिले का सिरोंज मध्यप्रदेश को हस्तांतरित किया गया। इस प्रकार 18 मार्च 1948 को आरंभ हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया एक नवम्बर 1956 को विभिन्न चरणों में पूर्ण हुई और वर्तमान राजस्थान अस्तित्व में आया।
इंडो-एशियन न्यूज सíवस।
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