जमानत राशि बढ़ने से उम्मीदवारों की संख्या में आई कमी
निर्वाचन आयोग द्वारा अब तक के आम चुनावों में भाग लेने वाले उम्मीदवारों की संख्या के बारे में जारी आंकड़ों से पता चलता है कि आपातकाल के बाद केंद्र में बनी जनता पार्टी की सरकार के गिरने के बाद वर्ष 1980 में हुए आम चुनावों में लोकसभा की 542 सीटों के लिए हुए चुनाव में पिछले चुनावों के मुकाबले सबसे ज्यादा 4629 उम्मीदवार मैदान में उतरे। इस तरह प्रत्येक सीट से औसतन 8.54 उम्मीदवार मैदान में थे।
इससे पहले के चुनावों पर नजर डालें तो स्थितियां काफी उलट थीं। वर्ष 1952 में हुए पहली लोकसभा के चुनाव में कुल 489 सीटों के लिए 1874 उम्मीदवार मैदान में थे, जबकि 1957 में हुए दूसरी लोकसभा के चुनाव में कुल 494 सीटों के लिए 1519 उम्मीदवारों ने अपना भाग्य अजमाया।
लोकसभा की सीटों की संख्या बढ़ाकर 520 किए जाने के बाद 1967 में हुए तीसरे आम चुनावों में 2369 उम्मीदवार जनता के बीच गए। इस दौरान प्रति सीट उम्मीदवारों की संख्या औसतन तीन से साढ़े चार के बीच रही।
आने वाले 1971 और 1977 के चुनावों में प्रति सीट से औसतन 5.37 और 4.50 उम्मीदवार मैदान में थे।
लेकिन, 1980 में हुए लोकसभा के चुनाव में स्थितियां बदल गई और लोकसभा के 542 सीटों के लिए 4629 उम्मीदवारों ने अपना भाग्य अजमाया। यह प्रचलन आने वाले चुनावों में चलता रहा और 1991 में हुए 10वीं लोकसभा के चुनावो में प्रत्येक सीट से औसतन 15.96 उम्मीदवार मैदान में थे।
इसके बाद वर्ष 1996 में 11वीं लोकसभा के लिए हुए चुनावों में हर क्षेत्र से औसतन 25.69 उम्मीदवार खड़े थे, लेकिन निर्वाचन आयोग ने उम्मीदवारों की इस बाढ़ को रोकने के लिए जमानत की राशि 500 रुपये से बढ़कर 10 हजार रुपये कर दिया, जिसके बाद 1998 में 12वीं लोकसभा के लिए हुए चुनावों में उम्मीदवारों की संख्या में करीब दो-तिहाई की कमी आई और यह प्रति क्षेत्र औसतन 8.75 हो गया।
इसी तरह 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में यह संख्या प्रति क्षेत्र 8.56 रही। पिछली यानी 14वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में यह संख्या प्रति क्षेत्र 10 उम्मीदवारों की थी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।