महंगाई दर शून्य के करीब

By Staff
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नई दिल्ली। देश में महंगाई की दर अब तक के सबसे निचले स्तर पर जा पहुंची है। 7 मार्च को खत्म हुए हफ्ते में महंगाई की दर 1.99% की जबरदस्त गिरावट के साथ महज 0.44 प्रतिशत पर आ गई। यह वर्ष 1975 के बाद का न्यूनतम स्तर है।

आसमान छूती कीमतों से परेशान उपभोक्ताओं के लिए वैसे तो यह राहत देने वाली खबर है लेकिन विडंबना यह है कि महंगाई दर के गिरने के बादजूद खाद्य वस्तुओं की कीमतों में कुछ खास कमी नहीं आई है।

कुछ वस्तुओं के दाम घटे
कुछ खाद्य पदार्थो के साथ-सार्थ ईधन और निर्मित वस्तुओं के दाम घटे हैं लेकिन अनाज और दाल समेत कई आवश्यक वस्तुओं की कीमतें गत वर्ष की समान अवधि के मुकाबले अब भी काफी ज्यादा हैं। 28 फरवरी को खत्म हुए हफ्ते में जब महंगाई दर 2.43 परसेंट पर पहुंची तब ये उम्मीद की जा रही थी कि इकॉनमिक ग्रोथ को रफ्तार देने के लिए आरबीआई रेट-कट्स करेगी।

फूड-प्रोडक्ट्स की बात करें तो इस दौरान अनाज 5 परसेंट सस्ता हुआ। जबकि चाय, फल और सब्जियों के दाम 3 परसेंट नीचे आए। हालांकि, मूंग दाल और मछली के दाम में 2-2 परसेंट की तेज़ी आई। वहीं, फ्यूल की बात करें तो पावर लाइट और लुब्रिकैंट्स कटैगरी, जेट फ्यूल और खेती के लिए बिजली 8 परसेंट सस्ती हुई। और लाइट-डीज़ल 7 परसेंट सस्ता हुआ।

उद्योग जगत में घबराहट
निर्मित (मैन्युफैक्चर्ड) वस्तुओं की कीमतों में गिरावट से उद्योग जगत की नींद उड़ गई है। इस बीच, सरकार ने इन आशंकाओं को निराधार बताया है कि घरेलू अर्थव्यवस्था को डिफ्लैशन (अपस्फीति) के दौर से गुजरना पड़ सकता है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा, 'यदि किसी हफ्ते महंगाई की दर कुछ ज्यादा ही नीचे आ जाती है तो इसे आप डिफ्लैशन नहीं कह सकते। हालांकि यह सच है कि इसमें तेज गिरावट देखने को मिली है और मेरा यह मानना है कि यह अभी निचले स्तर पर ही रहेगी।" मोंटेक ने महंगाई की दर में गिरावट को अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा बताया।

अपस्फीति के मायने क्या हैं?
भारत अपस्फीति के बहुत करीब पहुंच चुका है। सवाल यह उठता है कि क्या हमें इसकी चिंता करनी चाहिए?

सरकार ने गुरुवार को कहा कि इस सप्ताहांत यानी सात मार्च को मुद्रास्फीति की दर- जिसे कि थोक मूल्य सूचकांक द्वारा मापा जाता है- महज 0.44%, रह गया है जो कि पिछले 30 सालों में सबसे कम है। अपस्फीति किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा है, शायद मुद्रास्फीति से अधिक।

इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला मुद्रास्फीति की नकारात्मक दर के चलते वास्तविक ब्याज दरें उच्च स्तर पर होने के बावजूद उन्हें नीचे लाने की जरूरत बन जाती है। दूसरे, लगातार गिरती कीमतों के चलते उपभोक्ता अपनी खरीद को इसलिए स्थगित कर देतें हैं कि आने वाले कुछ महीनों में वे और सस्ता क्रय कर सकेंगे, इसके चलते और अधिक अपस्फीति तथा मांग में कमी का दुष्चक्र आरंभ हो जाता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि दुनिया भर के कई देश इस वक्त अपस्फीति के करीब हैं, मगर भारत में मुद्रास्फीति गिरावट की प्रक्रिया बीते एक वर्षों से चल रही है।

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