मेघालय में सरकार बची, लेकिन अस्थिरता बरकरार (लीड-1)
भारी नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम के बीच हुए विश्वास मत पर हुए मतदान में एमपीए को महज एक वोट से जीत हासिल हुई, वह भी विधानसभा अध्यक्ष बिंदो लानोंग के मत से।
विश्वास मत के दौरान 27 विधायकों ने सत्तारूढ़ एमपीए के समर्थन में और 27 ही विधायकों ने सरकार के विरोध में मतदान किया। आंकड़ा बराबरी पर छूटने के पर अंत में विधानसभा अध्यक्ष ने अपना निर्णायक मत डाला और घोषणा की कि एमपीए ने एक मत से विश्वास मत जीत लिया है।
विश्वास मत के बाद मुख्यमंत्री डोनकुपर रॉय ने संवाददाताओं से कहा, "हमने सदन में विश्वास मत हासिल कर लिया है।"
इससे पहले, एमपीए से समर्थन वापस लेने वाले पांच विधायकों को मतदान से वंचित रहना पड़ा। विधानसभा अध्यक्ष ने इन पांचों के खिलाफ 'अंतरिम निलंबन' का आदेश जारी किया था।
विधानसभा अध्यक्ष ने कहा था कि अगले आदेश तक पांचों विधायकों के सदन में प्रवेश पर रोक लगा दी गई है।
इन पांच विधायकों में पूर्व मंत्री एडवाइजर पेरियोंग और पॉल लिंग्दोह, उपाध्यक्ष सनबार शुलइ, और दो निर्दलीय विधायक इस्माइल मराक और लिमिसन संगमा शामिल हैं।
इनमें से चार विधायक विधानसभा अध्यक्ष के आदेश को धता बताते हुए विधानसभा में घुस गए। उनमें से एक विधायक पॉल लिंगदोह ने विधानसभा अध्यक्ष के उस फैसले को चुनौती दे डाली जिसमें उन्होंने पांच विधायकों को मतदान से वंचित रहने संबंधी आदेश दिए थे।
लिंगदोह ने कहा, "हमें मतदान से रोकना असंवैधानिक है।"
विश्वास मत के तत्काल बाद पूर्व मुख्यमंत्री डी. डी. लापांग के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों ने राज्यपाल आर. एस. मुशहरी से मिलने और राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग को लेकर राजभवन का रुख कर लिया।
राज्यपाल से मिलने के बाद लापांग ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, "विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पूरी तरह असंवैधानिक रही। हमने राज्यपाल से सरकार को बर्खास्त करने और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है।"
इस बीच मताधिकार से वंचित रहे विधायकों ने अदालत का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है। इन विधायकों का कहना है कि जरूरत पड़ी तो वे सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जाने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
मेघालय विधानसभा में इन पांचों विधायकों द्वारा सत्तारूढ़ गठबंधन से नाता तोड़ लेने से एमपीए सरकार अल्पमत में आ गई थी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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